केजरीवाल का इस्तीफा ,जल्दबाजी में लिया गया फैसला-

64
जिस तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया ,मैं समझता हू वह श्री केजरीवाल द्वारा जल्दीबाजी में लिया गया फैसला है.हो सकता है आगामी लोकसभा चुनाव के लिए वो आम आदमी पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा वक़्त चाहते हो लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर मैदान से भाग खड़ा होना ,अपरिपक्वता ही दर्शाता है.केजरीवाल जी के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने एक मजबूत विकल्प के रूप में आत्मसात किया था …वर्षों पुरानी कांग्रेस और भाजपा की राजनीति से कुछ अलग हटकर जनता देखना चाहती थी ,लेकिन केजरीवाल जी ,जो अपने आंदोलनो के दौरान यह कहते रहे कि सत्ता के बाहर से कुछ नहीं हो सकता,व्यवस्था में प्रवेश लेना होगा,अन्ना हजारे के विरोध के बावजूद अलग हटकर उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनायी और एक वर्ष की राजनीति में अपनी दमदार उपस्थिति से दिल्ली विधानसभा और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में सफल रहे. लोकपाल बिल जरुरी था और है लेकिन अगर एक बार में वो पास नहीं हो सका तो पुनः पेश किया जा सकता था.और तब विरोध करने वालों को आप बेनकाब कर सकते थे.लेकिन केजरीवाल जी इतनी जल्बाजी में दिख रहे हैं कि संवैधानिक व्यवस्थाओं पर भी भरोसा नहीं जाता पाते..हर चीज में जल्दीबाजी,.ये कौन सी व्यवस्था आप बनाना चाह रहे हैं?
हो सकता है दिल्ली के पुनर्चुनाव में फिर से केजरीवाल जी को पूर्ण बहुमत मिले ,पर इस बात कि क्या गारंटी है कि वो मैदान छोड़ कर नहीं भागेंगे? केजरीवाल जी आपको जनता ने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया ..क्या पुनः मतदान से चुनाव का खर्च जनता पर बोझ नही बनेगा?
केजरीवाल जी कहते हैं कि वे सरकार चलाने और कुर्सी बचाने नही आए हैं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए हैं परन्तु क्या व्यवस्था परिवर्तन के लिए जनता के मेहनत के  पैसों  को हर दो महीने में  चुनाव में झोंकना सही  कहा जा सकता है ?
विजय सिंह

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More