कुंतलेश पाण्डेय की नजर से आइये जानते है किस रंग से किस दिन पूजा करे माँ की
जो आदिशक्ति माँ दुर्गा के नाम से संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है भक्तों कल्याण के लिए भगवती दुर्गा ने नौ दिनों में नौ रूपों जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा को प्रकट किया। जिन्होंने नौ दिनों तक महाभयानक युद्ध कर शुंभ-निशुंभ, रक्तबीज आदि अनेकों दैत्यों का वध कर दिया।
उन्हीं देवियों की आराधना नौ दिनों तक विशेष पवित्रता से की जाती है। नौ देवियों में प्रथम श्री शैलपुत्री, द्वितीय श्री ब्रह्मचारिणी, तृतीय श्री चंद्रघंटा, चतुर्थ श्री कुष्मांडा, पंचम श्री स्कंदमाता, षष्ठम श्री कात्यायनी, सप्तम श्री कालरात्रि, अष्टम श्री महागौरी, नवम श्री सिद्धिदात्री की पूजन व हवनादि यज्ञ क्रियाओं का आयोजन किया जाता है।
साथ नवरात्रों में रंगों का विशेष महत्व है, रंग प्रत्येक व्यक्ति को बड़ी तीव्रता से प्रभावित करते हैं। इसलिए पहले नवरात्रि में सफेद व लाल रंग का प्रयोग व कपड़े शुभ माने गए हैं। दूसरे में केशरिया, पीच व हल्का पीला रंग, तीसरे में लाल, चौथे में नीला-सफेद व केशरिया रंग, पाँचवें में हरा, लाल, सफेद, छठे में लाल-सफेद, सातवें में नीला-लाल-सफेद, आठवें में लाल-केशरिया-पीला-सफेद-गुलाबी, तथा नौवें दिन लाल, सफेद रंग बहुत अच्छे माने जाते हैं।
पूजन के पूर्व जौ बोने का विशेष फल होता है। पाठ करते समय बीच में बोलना या फिर बंद करना अच्छा नहीं है। ऐसा करना ही पड़े तो पाठ का आरम्भ पुनः करें। पाठ मध्यम स्वर व सुस्पष्ट, शुद्ध चित्त होकर करें। पाठ संख्या का दशांश हवनादि करने से इच्छित फल प्राप्त होता है। दूर्वा (हरी घास) माँ को नहीं चढ़ाई जाती है। नवरात्रों में पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों का व्रत अपनी सामर्थ्य व क्षमता के अनुसार रखा जा सकता है।
नवरात्रों के व्रत का पारण (व्रत खोलना) दशमी में करना अच्छा माना गया है। यदि नवमी की वृद्धि हो तो पहली नवमी को उपवास करने के पश्चात् दूसरे दसवें दिन पारण करने का विधान शास्त्रों में मिलता है।
नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें श्रद्धा के साथ भोजन व दक्षिणा देना अत्यंत श्रेष्ठ होता है। इस प्रकार भक्त अपना ऐश्वर्य बढ़ाने हेतु सर्वशक्ति रूपा माँ दुर्गा की अर्चना कर सकते हैं।
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