जमशेदपुर।
अंकल ए आज साकची निकल पडे हैं अपनी स्कूटी लेकर….आखिर आंटी के पसंद की चावल और मसालें खरीदनी है.मनपसंद दुकान से जरुरत की सामग्री लेकर अंकल ने उसे स्कूटी के आगे वाले हिस्से में डाला और वापस अपने घर की ओर निकल पडे.सत्तर की उम्र के करीब आ पहुंचे अंकल ए आज भी अपने घर का राशन लाते हैं क्योंकि और कौन ला एगा? बेटे और बहु अमेरिका में सेटल्ड हैं और बेटी इंग्लैंड में…वृद्ध माता पिता रिटायर होने के बाद अपने शहर जमशेदपुर में ही रहते हैं क्योंकि यहां परिचितों की अपनी तादाद है जिससे इनका मन लगा रहता है.अंकल ए की पत्नी यानि आंटी ए को विदेश में बिल्कुल मन नहीं लगता..बस बेटे और बेटी के पास कभी कभार घूम फिर कर आ जाती हैं.अंकल ए एक ड्राइवर रखे हैं जिसके ड्रामे से तंग आकर वे खुद अपनी स्कूटी उठाकर अक्सर चल देते हैं.आजकल की ट्रैफिक में वे कार अब नहीं चलाते वर्ना वे एक्सपर्ट ड्राइवर थे..उम्र हो चली है तो आंटी उनको डांटती हैं कि ड्राइवर का इंतजार कर लो मगर अंकल कहां मानेंगे …और वो करे भी तो क्या ; बाकी बाहरी कामों की जिम्मेवारी भी उनकी है.बैंक , एल आ ईसी ऑफिस के चक्कर भी काटने हैं तो वे अपना काम खत्म करने के लिए स्कूटी से निकल पडते हैं.
हां तो जरुरत की सामग्री स्कूटी पर लादकर वे अपने घर की तरफ निकल पड़े….साकची थाने के निकट पहुंचे ही थे कि ट्रैफिक सिपाही ने रोका–अंकल…रुकिए……अंकल ए ने हेल्मेट पहन रखा था ….यूं अचानक रोकने से थोडी हडबडाहट महसूस हुई..अब बूढी हड्डियां इतनी मजबूत नहीं रही कि लहराते हुए गाडी चलाएं तो वे काफी धीरे धीरे ही गाडी चला रहे थे.अंकल ए ने गाडी रोकी तो ट्रैफिक पुलिस ने कहा-अंकल हेल्मेट तो पहने हैं बाकी कागज है क्या? लाइसेंस है क्या?अंकल ए ने कहा–सब है? लीजिए देखिए..अंकल बड़बड़ाते हुए कागजात निकालने लगे–बूढा आदमी को ये लोग रोकता है जबकि जानता है कि एक उम्र के बाद लाइसेंस रिन्यूअल नहीं होता.अंकल ए ने जैसे कागजात निकालना शुरु किया ट्रैफिक पुलिस को शायद याद आ गया कि ये सही नहीं या शायद ये याद आ गया कि एक उम्र के बाद लाइसेंस रिन्यूअल नहीं होता, कहीं बेकार की कोई झंझट न हो क्योंकि अंकल ए तो पूरा कागजात लेकर चल रहे थे …सिपाही ने कहा–अंकल जाने दीजिए, जाइए…..अंकल ए कहां मानने वाले थे..बोले–नहीं, अब जब रोक ही दिया है तो देखिए पूरे कागजात देखिए….सिपाही–अरे नहीं अंकल जाइए…
अंकल ए ने कहा–आपके ही सीनियर अफसर ने निर्देश दिया है कि थाना प्रभारी अपने इलाके के जरूरतमंद बुजुर्गों को आपात स्थिति में दवाइयां पहुंचाएंगे या जिस प्रकार की मदद की जरूरत होगी मदद मुहैया कराएंगे और आपलोग हेल्मेट पहना देखकर भी बुजुर्ग को रोकते हैं, उन्हें परेशान करते हैं…
सिपाही-अंकल जाने दीजिए..जाइए…
अंकल ए आगे बढ ग ए..वे सोचते जा रहे थे कि इस शहर में ज्यादातर बुजुर्गों के बच्चे बाहर रहते हैं…कई बुजुर्ग तो इतने सक्षम भी नहीं कि कार ड्राइवर का खर्च उठाएं, ऐसे में वे बाइक लेकर यहां वहां काम से जाते होंगे..जाहिर है ट्रैफिक पुलिस उनको परेशान करती होगी….लेकिन वे किसी से कह नहीं पाते होंगे..बाराद्वारी, सोनारी जैसे इलाके तो बुजुर्गों से ही भरे हैं जहां बडे बडे घर हैं लेकिन सिर्फ बुजुर्ग माता पिता रहते हैं..तो क्या पुलिस का काम सिर्फ पावर चमकाना है?बाइक लेकर काम से निकले बुजुर्गों के प्रति उनकी कोई संवेदना नहीं है? आज जिस तरह अचानक सिपाही ने रोका अगर उनका संतुलन बिगड जाता तो क्या होता?आंटी का क्या होता?
सोचते सोचते घर आ गया था…..आंटी मनपसंद दुकान से आई जरूरत की चीजें देखकर प्रफुल्लित हो रही थी…अंकल ए सोच रहे थे आज कोई बडी जंग जीतकर आ गए…अंकल के पास सारे कागजात थे लेकिन तपती गर्मी के बीच जल्द घर पहुंचने की जद्दोजहद के बीच सिपाही के रोकने से घबराहट तो हो ही जाती है कि क्या पता कोई कागज घर में ही छूट गया हो..अब सिपाही से क्या कोई बहस करे कि भई डिजिटल इंडिया के इस युग में आपलोग क्यों हार्ड काॅपी लेकर चलने का दबाव बनाते हो? गाडी का नं टाइप करो और देख लो….
ये तो सरकार और बडे अफसरों को सोचना चाहिए कि डिजिटल इंडिया का कान्सेप्ट ट्रैफिक में क्यों नहीं आ रहा.वो भी मिनी मुंबई कहे जानेवाले जमशेदपुर में?
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