Saturday Special:मकई की रोटी और सरसो दा साग का कश्मीर से भी है गहरा कनेक्शन—चौंक गए न

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अन्नी अमृता

 

आम तौर पर मकई की रोटी या फिर सरसो का साग—ये सुनते ही हम पंजाब को याद करते हैं. यह पंजाबी खान पान का एक अहम हिस्सा है. लेकिन अगर धरती के जन्नत कश्मीर में कोई छोटी बच्ची आपको यह व्यंजन खाने के लिए आवाज लगाती औऱ गाड़ियों को रोकती दिख जाए तो आश्चर्य मत कीजिएगा.. दरअसल यह जगह श्रीनगर से पचास किलोमीटर दूर दूधपथरी है जहां की मकई की रोटी और सरसो का साग न खाया तो क्या खाया. कश्मीर के इस हिस्से में पीढ़ियों से यह पंजाबी व्यंजन बहुत प्रचलित है.लेकिन इस जगह के बारे में टूरिस्ट कम जानते हैं इसलिए यहां भीड़ नहीं है. कुछ साल पहले ही यह टूरिज्म के नक्शे में आय़ा है. आम तौर पर ज्यादातर टूरिस्ट श्रीनगर आने के बाद सोनमर्ग, गुलमर्ग और पहलगम जाकर वापस लौट जाते हैं. लेकिन मैंने अपनी कश्मीर यात्रा के अंतिम दिन कुछ चुनिंदा टूरिस्टों की तरह दूधपथरी जाना तय किया.दूथपथरी से लौटते यह बच्ची मिली और फिर बच्ची के माता पिता मकई की रोटी औऱ सरसो का साग बेचते दिखे. इनलोगों ने इतने प्यार से बुलाया कि हम खुद को रोक नहीं पाए और इसका स्वाद लिया. उन्होंने बताया कि यह व्यंजन पीढियों से प्रचलित हैं.साग के साथ चटनी भी है जो इसके जायके को खास बनाती है.अब दूधपथरी धीरे धीरे पर्यटन के नक्शे में आ रहा है तो यहां आस-पास की बस्तियों में रहनेवालों ने इस व्यंजन को अपनी जीविका का साधन बनाया है.

दूधपथरी सर्दियों में बर्फ का मैदान बन जाता है तो गर्मी में यही मैदान हरा भरा होकर अद्भुत नजर आता है.यहां बहनेवाली नदी शीलगंगा दूध की तरह दिखती है इसलिए इसे दूधपथरी कहते हैं
धरती का जन्नत कहे जाने वाली कश्मीर की वादियों में आने का मौका मिलना किसी आश्चर्य से कम नहीं था. ये मौका मैंने खुद को दिया वो भी तब जब लोगों के मन में अब भी कश्मीर को लेकर कई आशंकाएं और भ्रांतियां हैं.जबकि सच यह है कि पिछले साल रिकॉर्ड तोड़ टूरिस्ट आए औऱ इस साल भी टूरिस्ट लगातार जा रहे हैं. कश्मीर की खूबसूरती , बर्फ से भरे पहाड़, बर्फ में स्कीईंग का मज़ा, श्रीनगर के अलावे गुलमर्ग औऱ पहलगम के नज़ारे ये वो अनुभव हैं जिन्हें बयां करना काफी मुश्किल है. आप कितना भी लिखें कम पड़ेगा.आम तौर पर लोग कश्मीर की राजधानी श्रीनगर आते हैं और वहीं रूकते हैं. श्रीनगर से ही वे पहलहम, सोनमर्ग या गुलमर्ग वगरैह जाते हैं और रात तक लौट आते हैं. कई लोग पहलगम में रूक भी जाते हैं.

पहलगम के अंतर्गत बेताब वैली, आरू वैली और चंदनवाड़ी जैसी घाटियां हैं जहां जाकर महसूस होगा कि एक अलग ही दुनिया में आ चुके हैं.यहां के नज़ारे आपको दिखाती हूं

 

अब आते हैं गुलमर्ग की तरफ,एवरेस्ट न सही अपरवट सही

-पहलगम हो या गुलमर्ग या फिर कोई और जगह.जब आप श्रीनगर से उन जगहों पर जाते हैं तो रास्ते में बर्फ की चादरें या पहाड़ी घर एक अद्भुत दृश्य उपस्थित करते हैं.गुलमर्ग आकर स्कीईंग और बर्फ में होनेवाली अन्य गतिविधियों में भाग लेना अपने आप में अनूठा अनुभव है.गुलमर्ग में फेज वन टू और फेज थ्री तक लोग गंडोला यानि रोपवे से जाते हैं. फेज वन में बर्फ के खेलों का आनंद लेने के बाद हमलोग फेज टू पर गए जहां बादलों के इतने करीब और अपरवट पर्वट की चोटी पर अनोखा अनुभव मिला.रोप वे से बादलों के बीच बर्फ की चादरों से घिरे पेड़ पौधों के बीच से गुजरते हुए पर्वत की चोटी पर पहुंचकर लगा मानो एवरेस्ट पर आ गए

 

कश्मीर के लोग बहुत मिलनसार हैं. होटल न मिलने पर कई लोग तो घरों पर ठहरने का न्योता दे देते हैं. किसी सुदूर गांव में चले जाईए या शहर में हर जगह आपको यहां के लोगों का गर्मजोशी से मिलना सुखद एहसास देगा. स्त्री हो या पुरूष सभी यहां के टूरिस्ट को भगवान मानते हैं.किताबों में हमने पढ़ा कि भारत की संस्कृति में अतिथि देवता होता है जो कश्मीर में साफ साफ नज़र आता है.खूबसूरत जगहें तो कईं होंगी लेकिन कश्मीर में एक बात है कि यहां आकर वापस जाने का मन नहीं करता.

 

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