Bihar Rail Hadsa :आज ही के दिन 41 साल पहले जब पुल से नीचे गिरी यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेंन

373
AD POST

रेल खबर ।

आज से 41 साल पहले वो तारीख 6 जून की ही थी। बिहार के खगड़िया जिले में मानसी- सहरसा रेल खंड पर बदला घाट और धमारा घाट के बीच रेल हादसे में  काफी संख्या में लोग काल के गाल में समा गए हालांकि सरकारी आंकड़ा 300 का था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में वो अलग तरह की दुखद घटना थी जिससे बरबस हर साल 6 जून की दुखद याद ताजी हो जाती है। 1981 के जून महीने की 6वीं तारीख आज भी उन परिवारों को पीड़ा दे जाती है जिन लोगों ने अपनों को खोया था। पैसेंजर ट्रेन के 9 डिब्बे में नदी में गिर गए थे जिसमें 1 हजार से ज्यादा लोग सवार थे। खास बात यह है कि इस हादसे के बारे में सही कारण क्या थे आज तक पता नहीं चल सका है।

यह भी पढे़  Indain Railwey Irctc : सांसद जी आखिर कब तक ठगेगी रेलवे , आपके संसदीय क्षेत्र की जनता को

इतिहास के झरोखो से कैसे हुआ था हादसा : आज से ठीक 41 वर्ष पूर्व हुए भारत के सबसे बड़े रेल दुर्घटना के कारणों पर यदि गौर करें तो इस रेल दुर्घटना से जुड़ी दो थ्योरी हमेशा से प्रमुखता से लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रही है घटना से जुड़ी थ्योरी यह है कि छह जून 1981 दिन शनिवार की देर शाम जब मानसी से सहरसा ट्रेन जा रही थी तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गया जिसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक मारी पर बारिश होने की वजह से पटरियों पर फिसलन की वजह से गाड़ी पटरी से उतरी और रेलवे लाइन का साथ छोड़ते हुए सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गये।

जबकि इस एक्सीडेंट से जुड़ी दूसरी थ्योरी यह है कि पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गई थी बारिश की बूंदे खिड़की के अंदर आने लगी तो अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की को बंद कर दिया। जिसके बाद हवा का एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये और तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी।

हालांकि घटना के काफी वर्ष बीत जाने के बाद जब मीडिया की टीम घटना स्थल के आस पास के गांव का दौरा करने पहुंची तो अधिकतर गांव वालों ने दूसरी थ्योरी को जायज बताते हुए बताया कि तेज आंधी में यात्रियों द्वारा खिड़की बंद करना घातक साबित हुआ।

काल के गाल में समा गये थे सैकड़ो यात्री : 6 जून 1981 का वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गई। जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी थी। ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि ट्रेन के छत से लेकर ट्रेन के अंदर सीट से पायदान तक लोग भरे हुए थे। उस दिन लगन भी जबरदस्त था और जिस वजह से उस दिन अन्य दिनों के मुकाबले यात्रियों की भीड़ ज्यादा थी।

मानसी तक ट्रेन सही सलामत यात्रियों से खचाखच भरी बढ़ रही थी। शाम तीन बजे के लगभग ट्रेन बदला घाट पहुँचती है थोड़ी देर रुकने के पश्चात ट्रेन धीरे – धीरे धमारा घाट की ओर प्रस्थान करती है। ट्रेन कुछ ही दूरी तय करती हैं कि मौसम खराब होने लगता है और उसके बाद तेज आंधी शुरू जाती है। फिर बारिश की बूंदे गिरने लगती है और थोड़ी ही देर में बारिश की रफ्तार बढ़ जाती है। तब तक ट्रेन रेल के पुल संख्या 51 के पास पहुँच जाती है।

इधर ट्रेन में बारिश की बूंदे आने लगती है और यात्री फटाफट अपने बॉगी की खिड़की को बंद कर लेते है तब तक ट्रेन पुल संख्या 51 पर पहुँच जाती है। पुल पर चढ़ते ही ट्रेन एक बार जोर से हिलती है ट्रेन के हिलते ही ट्रेन में बैठे यात्री डर से काँप उठते है कुछ अनहोनी होने के डर से ट्रेन के घुप्प अँधेरे में ईश्वर को याद करने लगते है तभी एक जोरदार झटके के साथ ट्रेन ट्रैक से उतर जाती है और हवा में लहराते हुए धड़ाम से बागमती नदी से टकराती है।

AD POST

यह भी पढ़े INDIAN RAILWAY : इंटरलॉकिंग व ट्रैफिक ब्लॉक के कारण 4 ट्रेनें रद्द, इंटरसिटी डायवर्ट

मानवता हुई थी कलंकित : भारत की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना से छह जून 1981 को एक बदनुमा दाग जुड़ गया जिसने मानवता को कलंकित कर दिया जो उस दुर्घटना में बच गये, वे आज भी उस मंजर को याद कर सिहर उठते हैं। बताया जाता है छह जून की शाम ट्रेन की बोगियों के नदी में गिरने के साथ ही चीख-पुकार मच गया। कुछ यात्री चोट लगने या डूब जाने से नदी में जलविलिन हो गये तो कुछ जो तैरना जानते थे। उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से अपने और अपने प्रियजनों को निकाला.पर इसके बाद जो हादसा हुआ, वह मानवता के दामन पर बदनुमा दाग बन गया।

बताया जाता है कि घटना स्थल की ओर तैरकर बाहर आने वालों से कुछ स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। यहां तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू कर दिया। कुछ यात्रियों का तो यहां तक आरोप है कि जान बचाकर किनारे तक पहुंची महिलाओं की आबरू तक पर हाथ डालने का प्रयास किया गया। वही कुछ लोग बताते है कि बाद में जब पुलिस ने बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से टोकरियों में सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे। इससे यात्रियों के आरोपों की पुष्टि हुई थी।वही आज के समय में बदला व धमारा घाट के आसपास के ग्रामीण जहाँ इस बात को झूठ का पुलिंदा बताते है तो कुछ दबी जुबान से इस बात पर सहमती भी जताते है।

मृतकों की संख्या पर कंफ्यूजन : वर्ष 1981 के सातवें महीने का छठा दिन 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन के यात्रियों के अशुभ साबित हुआ और भारत के इतिहास के सबसे बड़ी रेल दुर्घटना में शुमार हुआ। इस दुर्घटना में पैसेंजर ट्रेन की सात बोगियां बागमती नदी की भेंट चढ़ गई। वही घटना के बाद तत्कालीन रेलमंत्री केदारनाथ पांडे ने घटनास्थल का दौरा किया। हालांकि, घटना के बाद रेलवे द्वारा बड़े पैमाने पर राहत व बचाव कार्य चलाया गया परंतु रेलवे द्वारा घटना में दर्शायी गई मृतकों की संख्या आज भी कन्फ्यूज करती है क्योंकि सरकारी आंकड़े जहाँ मौत की संख्या सैकड़ो में बताते रहे तो वही अनाधिकृत आंकड़ा हजारो का था।

जब मीडिया की टीम ने जब घटनास्थल के आसपास का दौरा किया तो कई ग्रामीणों ने बताया कि बागमती रेल हादसे में मरने वालों की संख्या हजारो में थी। ग्रामीणों ने बताया कि नदी से शव मिलने का कारवां इतना लंबा था कि बागमती नदी के किनारे कई हफ़्तों तक लाश जलती रही थी। वही घायलों की संख्या की बात करे तो यह संख्या भी हजारो में थी।

 

यहाँ यह बता दे कि यह हादसा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी रेल दुर्घटना में शामिल है। वही विश्व की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना श्रीलंका में 2004 में हुई थी जब सुनामी की तेज लहरों में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस विलीन हो गई थी.उस हादसे में सत्रह सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

चर्चा – ए – हादसा : आज से 40 वर्ष पूर्व हुए देश की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना से जुड़ी हमेशा से कई चर्चाएं आम रही। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण चर्चा आज भी लोगो की जुबान पर है। बताया जाता है कि हादसे के बाद बागमती नदी से शव इतनी ज्यादा संख्या में निकले थे कि प्रशासन ने कुछ दिनों के लिए पुल संख्या 51 के आसपास के ग्रामीणों और पशुओं को बागमती के पानी ना पीने की सलाह दी थी.इसके साथ ही छह जून 1981 की संध्या धमारा और बदला के आसपास तूफान का वेग इतना ज्यादा था कि छोटे – छोटे बच्चे को उठा कर एक जगह से दूसरी जगह गिरा देता था।

छह जून 1981 को ट्रेन में यात्रियों की भीड़ ज्यादा होने की मुख्य वजह शादी – बियाह का लग्न जबरदस्त होना था।वही ट्रेन में अधिकतर यात्री शादी – बारात में जा रहे थे या लौट रहे थे। वही घटनास्थल के आसपास ग्रामीण बताते है कि घटना के बाद लगभग एक महीने तक हर रोज दिन और रात चिताये जलती रही। बुजुर्ग बताते है कि देश की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना के अगले दिन सुबह से ही हेलीकॉप्टरो का पुल संख्या 51 के बगल के खेत में उतरना – उड़ना कई दिनों तक जारी रहा।

ग्रामीण बताते है कि सेना और नेवी द्वारा शवो को खोजने के लिए काफी मशक्कत किया गया। सेना ने पानी के अंदर टाइमर विस्फोट कर शव निकालने की योजना बनाई थी। यहां यह बता दे कि रेलवे के लिए 1981 अशुभ वर्ष के रूप में जाना जाता है। उस वर्ष जनवरी से दिसम्बर तक में भारत के विभिन्न हिस्सों में कई रेल दुर्घटनाये हुई थी। उस समय रेल की कमान केदारनाथ पांडे के हाथ में थी। इस रेल हादसे के बाद हर गोताखोर को एक लाश निकालने पर कुछ पैसे देने को कहा गया था पर गोतोखोरों ने लाश निकालने के बदले में पैसे लेने से मना कर दिया।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More