समय बदला लेकिन तस्वीर नही, ना ही बदल पाई अनुमंडल क्षेत्र की तकदीर ही
22 सितंबर 1992 को हुआ था अनुमंडल का स्थापना
सिमरी बख्तियारपुर(सहरसा) Brajesh Bharti की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
इसी महीने के 22 तारीख को सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल स्थापना के पच्चीस वर्ष पूरे करेगा।स्थापना के इतने वर्षो बाद आज भी अनुमंडल कार्यालय सरकारी गोदाम में चल रहा हैं।विकास के नाम पर हवा-हवाई दावे जमीन की सच्चाइयों से कोसो दूर है।
सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल प्रत्येक साल दर साल अपना स्थापना दिवस धूमधाम से मनाता रहा है।जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन क्षेत्र का विकासशील चेहरा धुंधला पड़ा हुआ है।अब भी अनुमंडल क्षेत्र के सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ व बनमा ईटहरी प्रखंडों में प्रशासनिक अनियमितता चरम पर है।वहीं क्षेत्र में समस्याओं का अंबार लगा है।
कब हुई थी स्थापना –
इस अनुमंडल को 22 सितंबर 1992 को अनुमंडल का दर्जा मिला था, तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उद्घाटन करते हुए कहा था कि अनुमंडल से संबंधित सभी कार्यालय जल्द ही खोले जायेंगे।लेकिन वक्त का पहिया पच्चीसवें वर्ष में घुसने को बेताब है और वर्तमान स्थिति यह है कि अनुमंडल कार्यालय अभी भी निर्माणाधीन ही है।जिस कारण वर्तमान में अनुमंडल कार्यालय व न्यायालय गोदाम में चल रहा है।
सड़क की समस्या-
यदि सड़को की स्थिति की बात करे तो क्षेत्र में सड़को पर जलजमाव प्रमुख समस्या हैं। इस कारण सालों भर अनुमण्डल की अधिकतर सड़के पानी में डूबी रहती है।वही क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या भी मुंह बाये खड़ी है।क्षेत्र के हजारों लोग दिल्ली, पंजाब, गुजरात, बंगाल, असम सहित देश के कई हिस्सों में रोजगार के लिए हर वर्ष पलायन करते नजर आते है।
स्वास्थ्य की स्थिती-
वही स्वास्थ्य के बात करे तो पांच करोड़ की लागत से सौ शैय्या वाला भव्य अनुमंडल अस्पताल तो बनाया गया लेकिन मरीजो को अनुमंडल अस्पताल में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी भी सुविधा नसीब नही हो पा रही हैं और किसी भी मरीच को प्राथमिक उपचार के बाद सीधे रैफर कर देने का नियम यहां विधमान है। इतनी बुरी स्थिती है कि अस्पताल में डॉक्टर भी अधिकाधिक समय नदारद ही रहते हैं और बेहतर इलाज के लिए आज भी लोगों को सहरसा, बेगुसराय या पटना जाना पड़ता हैं।
शिक्षा का हाल-
शिक्षा की बात करे तो अनुमण्डल मे वह भी चौपट नजर आता है।सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों से लेकर भवन आदि की कमी आम बात है।सरकारी शिक्षा मध्याह्न भोजन तक ही सीमित रह गई है।बात प्राइवेट स्कूल की करे तो अनुमंडल के तीनों प्रखंड में निजी स्कूल तो कई है परंतु बच्चो को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के बजाय ये स्कुल मुनाफा कमाने में ज्यादा बल देते है।वही अनुमंडल क्षेत्र अंतर्गत कइयो पंचायत तटबंध के अंदर है जो आज भी मुश्किल भरी जिन्दगी जी रहे हैं।
बिजली की व्यवस्था-
आज भी सड़क, बिजली आदि सुविधाओं से मरहूम फरकियावासी आज भी लालटेन युग में जीने को विवश है।वही बीते दिनों आई बाढ़ ने तटबंध के अंदर बसे लाखो लोगो को काफी नुकसान पहुंचाया।आज भी तटबंध के अंदर कई पंचायतों में बिजली नही पहुंच पाई है।जो एक बड़ी चुनौती मुंह बाये खड़ी है।
मुलभूत सुविधाये –
बात मुलभूत सुविधाओं की करे तो तबियत खराब होने पर खाट ही इनका एंबुलेंस होता है और नदी पार करने और अस्पताल पहुंचने तक खाट एंबुलेंस पर सवार कइयों मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।क्षेत्र से गुजरने वाले राष्ट्रीय उच्च पथ 107 की दशा किसी से छिपी नही है।सड़क इतनी जर्जर हो चुकी है की पैदल भी चलने लायक नही बची है।सिमरी बख्तियारपुर एवं सलखुआ बाजार की वर्षो पुराने नाले की मांग आज भी अधूरी है।अनुमंडल मुख्यालय सहित क्षेत्र के सभी बाजार अतिक्रमणकारियों की चपेट में हैं।जिस वजह से अनुमंडल के तीनों प्रखंड में जाम एक आम समस्या है। कुल मिला कर कह सकते है कि भले अनुमंडल की स्थापना के 25 वर्ष हो गये है लेकिन सुविधा के नाम पर गांव जैसा ही माहौल बना हैं।
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