सरायकेला-मानसून ने किसानों के चेहरे से छानी हरियाली, छाया मायूसी के काला बादल

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चांडिल :  18 जुलाई

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अनुमंडल क्षेत्र में खेती ही जीविका निर्वाह का मुख्य साधन है मानसुनी वर्षा पर निर्भर एकमात्र धान की फसल का उत्पादन. धान के बिचड़े की रोपणी सामान्य रुप से आषाढ़ माह के अंतिम सप्ताह में शुरु हो जाती है व श्रावण माह के अंत तक समाप्त हो जाती है. परंतु वरुणदेव की नाराजगी से आषाढ़ माह में बिचड़े रोपणी के लिए प्रयाप्त वर्षा नहीं हुआ. जुलाई माह में भी मौसम बेवफा होती दिख रही है. जिससे किसानों के चेहरे से हरियाली गायब हो चुकी है, चेहरे पर मायूसी के काला बादल छाने लगा है. विगत कई वर्षो से मौसम दगा देने से धान की फसल उत्पादन नहीं होने से किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गया है व अधिकांश किसान कर्ज के तले डुबने लगा है. मौसम की बेरुखी से परेशान होकर किसान रोजगार के लिए पलायन करने का मन बना रहें है. इस साल भी श्रावण माह में पूर्ण रुप से बिचड़े रोपणी होने की संभावना नहीं है. धान की फसल उत्पादन के लिए खेत में पानी का जमाव रहना अति आवश्यक है. लेकिन अल्पवृष्टि के कारण खेत सुख गया है और बिचड़े झुलसने लगा है तथा जिन खेत में अब तक फसल लहलहाते उन खेतों में मवेशीयों का चरागह बन गया है ।
किसान कहतें है कि चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में राज्य के सबसे बढ़ा कृत्रिम जलाशय बहुद्देश्यीय स्वर्णरेखा परियोजना चांडिल बांध निर्माण किया गया है. लेकिन अफसोस की बात है कि इस जलाशय से सौ एकड़ जमीन का भी सिंचाई नहीं होती है. अरबों रुपये से नहर का निर्माण किया गया है. नहर भी सिर्फ शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. जानकारों का कहना है कि चांडिल बांध व मुख्य नहर का निर्माण सरकारी बाबुओं की जेब भरने के लिए किया जा रहा है. करीब 40 साल पहले शुरु की गई यह बांध परियोजना आज भी अधुरा है. परियोजना का लागत लगभग दो सौ करोड़ रुपये की योजना चार दशक तक छह हजार करोड़ तक पहुंच गयी है. फिर भी विस्थापन व किसानों की समस्या जसका तस बना हुआ है ।

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