सरायकेला-फुस्स मुद्दों पर झामुमो का फ्लाॅप शो

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गम्हरिया

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और विस्थापित प्रभावित संघर्ष समिति का उषा मार्टिन गेट के सामने, कम्पनी में 85 प्रतिशत स्थानीयों के नियोजन में प्राथमिकता के मुद्दे को लेकर आज सरायकेला विधायक चम्पाई सोरेन द्वारा किये गए महाजुटान के आह्वान में जुटी स्थानीय लोगों की कम भागीदारी भीड़ से कई प्रश्न खड़े हो गए हैं. क्या “झारखण्ड टाईगर” का तिलिस्म टूटने लगा है ? क्या आंदोलन का मुद्दा पुराना हो चला है? क्या सरायकेला झामुमों के गढ़ में भाजपा या अन्य राजनीतिक दलों ने सेंध लगा दिया है या श्री सोरेन के राजनीतिक सलाहकारों से आंदोलन के समय को लेकर चूक हो गयी है ?

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बहरहाल, आज की मीटिंग के लिए श्री सोरेन द्वारा एक सप्ताह पूर्व गम्हरिया राजस्थान भवन में की गई तैयारी बैठक में बीस हजार भीड़ और झामुमो के चाईबासा, बहरागोड़ा, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और मंझगांव के विधायकों के साथ प्रदर्शन और गेट मीटिंग करने के दावे की पड़ताल करने पर जो वास्तविकता दिखायी दी, उसका लब्बोलुआब यही है कि झामुमो का दावा फुस्स हो गया. पांचों विधायक नदारद दिखे और स्थानीय कार्यकर्ताओं के बजाय आयातित कार्यकर्ताओं ने श्री सोरेन की लाज बचायी. यद्यपि इस मीटिंग का आयोजन सरायकेला खरसावां के झामुमो जिला समिति की ओर से की गई थी, लिहाजा राजनगर से आये कार्यकर्ताओं को आयातित नहीं कहा जा सकता है, किन्तु गम्हरिया के स्थानीय कार्यकर्ताओं की नगन्य भागीदारी ने श्री सोरेन के माथे में सिलवटें ला दी.

अपेक्षा से बहुत कम भीड़ होने का यह तर्क देते सुना गया कि धान कटनी में व्यस्त कार्यकर्ताओं की वजह से मीटिंग में फीकापन दिखा. वजह कुछ भी हो, सरायकेला भाजपा इस मीटिंग को श्री सोरेन के राजनीतिक अवसान के रुप में आकलन करने लगी. झामुमो के गढ़ में भाजपा के लिए यह प्रकरण संजीवनी की तरह है और इसे आगामी चुनाव में बढ़त मानने लगी.

रही मुद्दों की बात. यदि उषा मार्टिन के संदर्भ में स्थानीय लोगों के नियोजन में प्राथमिकता, विस्थापितों को नौकरी, न्यूनतम मजदूरी बगैरह का आरोप लगाकर गेट मीटिंग करने की मंशा थी, तो यह मंशा किसी के गले नहीं उतर रहा है. श्री सोरेन कई बार झामुमो की अगुवायी में बनी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. दो दशकों तक क्षेत्र के विधायक रहे. औद्योगिक श्रम अधिनियमयों के अंतर्गत आनेवाले उपरोक्त सभी कथित विसंगतियों को दूर किया जा सकता था. यदि ये अभी भी लंबित हैं तो यह पीड़ितों के लिए दुर्भाग्य और सरकारी सिस्टम के लिए गाल पर तमाचा है. तो आखिर यह फ्लाॅप शो हुआ क्यों

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