शहर के प्रख्यात बांसुरी गुरु के साथ एक मुलाकात

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कौशिक घोष चौधरी

जमशेदपुर ।

 अगर कोई आपसे कहे कि रन-मशीन को एक शब्द में परिभाषित करें तो आप तुरंत कहेंगे सचिन तेंडुलकर। ऐसे ही अगर कोई कहे सुरों की देवी तो आप कहेंगे लता मंगेशकर, कोई कहे सदी के महानायक तो आप कहेंगे अमिताभ बच्चन। जमशेदपुर  में आज एक ऐसे कलाकार की कहानी जिसे प्यार से “बांसुरी गुरु” के नाम से प्रचलित है। आप कुछ सेकंड के लिए अंदाजा लगाइए कि ये बांसुरी  गुरु कौन हैं हालांकि इस बात का अंदाजा लगाने में आपको कुछ सेकंड ही लगेंगे। जी हाँ ये उद्गार प्रसिद्ध बांसुरी वादक अशोक दास है I प्रस्तुत है उनसे बातचीत के कुछ अंश।

बांसुरी बजाने की शुरुआत कैसे की, और बांसुरी ही क्यों?

स्कूल जमाने से ही मुझे बांसुरी की आवाज से प्रेम सा हो गया था। कोशिश भी की पर उस वक्त मैं सफल न हो पाया। उस जमाने में मेले वैगरह में बांसुरी काफी सस्ते दाम में मिल जाते थे, मेरे बांसुरी ही चुनने का यह भी एक कारण था।

 बांसुरी बजाने की तालिम कहाँ से ली ?

इस प्रश्न का जबाव देने से पहले एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा, जिसने मेरे जीवन को एक दम से बदल दिया। जैसा की मैंने पहले ही बताया कि स्कूल के जमाने से ही मुझे बांसुरी बजाने की ललक थी। उस वक्त मैं इंटर की पढ़ाई के साथ बैंकिंग की तैयारी कर रहा था एवं साकची गंडक रोड में रहता था। उस घर में पहले ही दिन थोड़ी सी फुर्सत मिली तो मैं सहमते-सहमते बांसुरी लेकर बैठा और धीरे-धीरे बजाने लगा। थोड़ी ही देर बाद मकान मालिक की बेटी आई और कहने लगी ‘मेरे पिताजी को यह सब एकदम से नापसंद है, कृपया  यहाँ बांसुरी न बजाएँ’। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। मैं उसी वक्त बांसुरी लेकर घर से निकल गया और घूमते घूमते जुबली पार्क चला गया। उस समय अब जहां चिड़िया घर है वहाँ घना जंगल हुआ करता था, वहाँ चला गया और जी खोल के ज़ोर ज़ोर से बजाने लगा। मैंने कसम खा ली कि अब तो बांसुरी सीख कर ही दम लूँगा। इसके बाद मैं अपने गुरु स्वर्गीय पं नंदलाल बसु जी से तालिम लेना प्रारम्भ किया। पर मुझे प्रैक्टिस करने के लिए जुबली पार्क या दोमुहानी नदी का किनारा ही भाता था।

मैं उस परिवार का हमेशा दिल से धन्यवाद करता हूँ कि अगर वो मुझे नहीं रोकते तो मैं कभी भी इस मुकाम पर नहीं पहुँच पाता। बाधा न आए तो चैलेंज लेने का मजा ही कहाँ आता है ?

इसके बाद कोलकाता के प्रख्यात सरोद वादक स्व. धीरेन चन्द्र (डॉली दा) मुझे अपने साथ कोलकाता ले गए और मैंने तीन साल तक उनके घर पर रहकर बांसुरी की बारीकियाँ सीखी। 1989 में उनके देहांत के बाद  मैं जमशेदपुर लौट आया।

फिर से मैं गुरु स्वर्गीय  पं नंदलाल बसु जी के शरण में गया एवं तकरीबन 15 वर्ष गुरुशिष्य परंपरा में उनसे तालिम ली।

आप की अब तक की उपलब्धि ?

एक शब्द कहूँ तो मुझे जमशेदपुर की जनता एवं संगीतप्रेमियों का अप्रतिम प्यार मिला है। सन 1990 से ले कर अब तक राज्य भर में सैकड़ों संगीत एल्बम चाहे वह आंचलिक भाषा में हो या हिन्दी में, भजन हो या लोक संगीत हो, का हिस्सा रहा हूँ। सैकड़ों सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी की। कई प्रोजेक्ट में संगीत निर्देशन भी किया। पर इसे मैं अपना उपलब्धि नहीं मानता। मैं मानता हूँ कि शायद ईश्वर ने मुझे बांसुरी वादन के माध्यम से समाज में अपना योगदान देने के लिए भेजा है। मैं अपने काम को खूब एंजाय करता हूँ।

 जमशेदपुर में आपके बाद कौन ? बांसुरी वादन की परंपरा आगे कैसे बढ़ेगी ?

यह सच है कि कुल मिलाकर शहर में शास्त्रीय संगीत के स्टूडेंट में पहले से कमी आयी है। कारण बहुत से है, मुख्य कारण है सरकारी उदासीनता। बच्चों को इसमें भविष्य नहीं दिखता। अभी भी जमशेदपुर में कई बांसुरी वादक अच्छा काम कर रहें है, बाहर जाकर सीख भी रहें हैं। पर जरूरत के हिसाब से इनकी संख्या काफी कम है। इस प्राचीन वाद्ययंत्र को  जीवित रखने में सरकार की ओर से भी प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

मेरे शिष्यों में से हीरक विश्वास, शक्ति सिंह, सनी कुमार शर्मा, कुमार, आद्रिता एवं नीलाद्रि विश्वास अच्छा बजा रहे हैं। मैं अपने स्तर से सभी शिष्यों को बांसुरी वादन की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता रहता हूँ।

 जमशेदपुर की सांस्कृतिक माहौल में आप खुद को कहाँ पाते है ?

सबसे पहले मैं कह दूँ कि मैं बांसुरी का शिक्षक नहीं बल्कि छात्र ही हूँ। मैं केवल अपने 27 वर्षों के संगीत जीवन का अनुभव बांटता हूँ। शुरू से ही मैं चलता फिरता पूछताछ केंद्र रहा हूँ। आपटे सर, आदिनारायण जी , त्रिलोचन सिंह जी जैसे अनेक संगीत गुरुओं का संगीत कार्यक्रम उनसे सीखने के बाद ही किया करता था।  जिनसे मैंने संगीत क्षेत्र में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग ली मेरे मित्रगण, मेरे सीनियर्स….लिस्ट काफी लंबी है।

हाल के दिनों में मैं दो कार्य मन लगाकर कर रहा हूँ। पहला … एकल शास्त्रीय बांसुरीवादन के लिए रियाज कर रहा हूँ। जमशेदपुर में इन दिनों मैं कई प्रस्तुतियाँ दे चुका हूँ। मेरे साथ तबले पर शहर के कई प्रतिष्ठित युवा तबलावादक जैसे अमिताभ सेन (ए ग्रेड- आकाशवाणी), प्रदीप भट्टाचार्य (ए ग्रेड- आकाशवाणी), स्वरूप मोइत्रा( बी हाई- आकाशवाणी) व सनत सरकार ने मंच सांझा किया है। दुआ करें कि मैं बांसुरी वादन के जरिए अपने गुरु एवं शहर का नाम राष्ट्रीय पटल पर रौशन कर सकूँ।

और दूसरी… मैंने एक शास्त्रीय वाद्यवृंद की टीम को संगीतप्रेमियों के बीच  में लाया है। शहर के कई दिग्गज कलाकार जैसे अनिरुद्ध सेन (सितार), सुभाष बोस (सितार), अमिताभ सेन व स्वरूप मोईत्रा (तबला),संदीप विश्वास (मोहनवीणा), सूजन-संगीता चटर्जी (गायन) इस टीम के हिस्सा बने हैं। निश्चित तौर पर यह टीम भविष्य में शहर को कुछ और कर्णप्रिय संगीत भेंट करेंगी।

जमशेदपुर में शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार को प्रोत्साहित करने के लिए बनी एक संस्था ‘जमशेदपुर म्यूजिक सर्कल’ के एक कार्यकर्ता के रूप में जमशेदपुर के शास्त्रीय संगीत जगत के तमाम कलाकारों को एक मंच में लाने में अपनी भूमिका अदा कर रहा हूँ।

 फिल्मी संगीत के बारे में क्या कहेंगे ?

मारे देश में फिल्मी संगीत वर्षों से लोकप्रिय रहा है। अमुनन सभी लोग इसे गाते बजाते हैं। पर फिल्मी संगीत को अच्छी तरह निभाने के लिए भी शास्त्रीय संगीत सीखना जरूरी है। और गाने केवल फूहड़ता, उत्तेजना और मनोरंजन के लिए ही नहीं अपितु समाज में संदेश देने के लिए भी होने चाहिए। इस पर नियंत्रण जरूरी है।

 युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?                  

बहुत ही सामान्य परंतु गंभीर प्रश्न है। इसका उत्तर देना जितना आसान है, अमल करना उतना ही मुश्किल। आज के युवा सिर्फ अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना परिवार, अपना समाज से प्रेम करें। अपनी लोक संगीत, परंपरा एवं संगीत विरासत को जिंदा रखे तो देश आगे बढ़ेगा।

 आपके लिए ऑक्सिजेन ?

हाँ यह मेरे कार्यस्थल LIC एवं मेरा परिवार है। मुझे मेरे सहकर्मियों ने हमेशा प्रोत्साहित किया है। मेरे बेटी अनुश्री,  गुरुमाँ उमा गुहा की चतुर्थ वर्ष (गायन) की छात्रा है। और मेरी धर्मपत्नी मेरे पीछे परिवार की तमाम जिम्मेवारियाँ सम्हालती है… सिर्फ मुझे रिलीफ़ देने के लिए।

     

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