रांची-राज्य सरकार जल्द ही प्लेसमेंट नीति बनायेगी – मुख्यमंत्री

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रांची।

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“हमारी सरकार राज्य से बाल मजदूरी, पलायन, अशिक्षा और बेरोजगारी को दूर करने के लिए संकल्पित है। प्रधानमंत्री का भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना को पूरा करने के लिए झारखण्ड में पूरी ईमानदारी के साथ सरकार काम कर रही है। झारखण्ड में जल्द ही प्लेसमेंट कानून तैयार किया जायेगा। सरकार राज्य के बच्चों को नवमीं कक्षा से ही कौशल विकास का प्रशिक्षण दे कर उन्हे हुनरमंद बनाने का काम कर रही है।“ उपोरक्त बातें माननीय मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने झारखण्ड मंत्रालय के सभागार में आयोजित सुरक्षित बचपन सुरक्षित भारत के व्याख्यान समारोह में कही।
श्री दास ने शान्ति नोबल पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी के सराहनीय पहल की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने जन्म भले ही मध्यप्रदेश में लिया है लेकिन उनकी कर्मभूमी झारखण्ड है। श्री दास ने कैलाश सत्यार्थी के जीवन संधर्ष से सभी को सीख लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा राज्य मानव संसाधन, खनिज संपना, जंगल, जमीन और जल से समृद्ध है लेकिन यहां की जनता आज भी गरीब है। आजादी के 70 वर्षों के बाद भी यहां की स्थिति नही सुधर पायी है। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में सरकार ने लक्ष्य तय कर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि अभी भी हमारे राज्य के कई जिले से हजारों बच्चों का पलायन हो रहा है। बाल समागम, बाल सांसद, तेजस्वनी जैसी योजनाओं के माध्यम से राज्य के बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने का काम हम कर रहे है। श्री दास ने कहा कि सरकार पूरी ईमानदारी से राज्य से पलायन को रोकने, उनके पूनर्वास और शिक्षा और कौशल विकास से बच्चों को जोड़ने का काम कर रही है। सरकार गरीबों को स्वाबलम्बी बनाने के लिए भी राज्य में निवेश और उद्योग को बढ़ावा देकर उनके आर्थिक स्थिति को सुधारने का काम कर रही है।
श्री दास ने कहा कि श्रम मंत्री के वक्त उन्होंने राज्य के कई हिस्से में छापेमारी कर हजारों बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया था। उन्होंने कहा कि आज राज्य के मुखिया के रूप में वे झारखण्ड के हर बच्चे को उसका अधिकार देने का प्रयास कर रहे हैं।
“सुरक्षित बचपन सुरक्षित भारत” व्याख्यान समारोह में लोगों को संबोधित करते हुए शान्ति नोबल पुरस्कार से सम्मानित समाज सेवी श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि अगर मैं झारखण्ड की धरती पर पैदल न चला होता तो मुझे शान्ति नोबल पुरस्कार नहीं मिला होता। शान्ति नोबल पुरस्कार का श्रेय यहां के बच्चों को जाता है। उन्होंने उन सभी मां पिता को धन्यवाद दिया जो अपना घर बेच कर अपने बच्चों को बचाने के लिए उनके पास आये थे। उन्होंने कहा कि मैने झारखण्ड के लोगों के चेहरे की वेदना देखी है। श्री सत्यार्थी ने कहा कि यहां की सरकार कई योजनाओं के माध्यम से विकास का कार्य कर रही है। बच्चों को शिक्षा से जोड़ना, तेजस्विनी योजना, ANTI TRAFFICKING, आदि की योजना चला कर यहां के हालात बदलने की पहल कर रहे है। उन्होंने कहा कि जब तक भारत शिक्षित, स्वच्छ और संपन्न नही होगा तब तक सुरक्षित भारत की कल्पना नही की जा सकती है। उन्होंन कहा कि पिछले 40 वर्षों के संधर्ष के बाद विश्व भर में उन्होंन बाल श्रमिकों और बाल अधिकार के लिए कानून बनाने पर संबंधित देश की सरकार को तैयार किया है। श्री सत्यार्थी ने कहा कि देश और राज्य के सभी जन प्रतिनिधि एक एक गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करें ताकि उस गांव के बच्चों को पूर्ण शिक्षा के साथ रोजगार भी मिल सके।
श्री सत्यार्थी ने कहा कि आज की दुनिया बदल गयी है अब ताकत तकनीक के रूप में लोगों के हाथों में है। यह ताकत ज्ञान की तरह है लोग इस ताकत का सही उपयोग कर देश को विकासशील बनायें। उन्होंने कहा कि जिस देश में बच्चे सिर्फ एक साल की पढ़ाई करते है वहां का जीडीपी 0.34 बढ़ जाता है। आज भी 6 करोड़ बच्चे कभी स्कूल नहीं गये, विश्व भर के 26 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उन्होंन सुझाव देते हुए कहा कि आज भी भारत में शिक्षा पर अधिक खर्च करने की जरुरत है। मुक्यमंत्री से उन्होंने आग्रह किया कि वे राज्य में प्लेसमेंट एजेंसी पर लगाम लगाने के लिए कानून बनायें, और विधान सभा से इसे पारित कर राज्य में इसे लागू करें। भारत सरकार से उन्होंने आग्रह किया कि वे पूनर्वास नीति को देश भर में लागू करें ताकि अगर कोई भी बच्चा बाल मजदूरी या पलायन से बचा कर लाया जाये तो उसे त्वरित मदद मिल सके।
श्री सत्यार्थी ने कोडरमा की 14 वर्षीय रेखा और मनन अंसारी का उदाहरण देते हुए कहा कि इन बच्चों ने समाज के खिलाफ खड़ा होकर एक नई मिसाल कायम की है। रेखा ने अपनी शादी का विरोध कर और मनन अंसारी ने माईका माइन्स की खुदायी का काम से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय तक का सफर अपने हुनर के दम पर किया है। उन्होंने कहा कि झारखण्ड में प्रतिभाओं की कोई कमी नही है बस जरुरूत है समाज और सरकार उन प्रतिभाओं को एक मंच देकर उन्हें आगे बढ़ाएं। श्री सत्यार्थी ने बताया कि भारत में वर्ष 1995 तक 10 लाख से ज्यादा बच्चे कालीन उद्योग से जुड़े थे लेकिन अब मात्र दो लाख बच्चे इस उद्योग से जुड़े है। जिन्हें जल्द ही इससे मुक्त करा दिया जायेगा। श्री सत्यार्थी ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि पलायन का दंश झेलने वाली बेटियों के साथ मानसिक और शारीरिक शोषण होता है। भारत में 47 प्रतिशत लड़कियां जो 18 वर्ष से कम उम्र की हैं वो या तो मां बनने वाली है या फिर वे किसी की पत्नी हैं। देश के एक तिहाई बच्चे भूखमरी के कारण मर रहे हैं। आज बेटियां मां के गर्भ से लेकर सड़क, स्कूल, बस, ट्रेन, मुहल्ले यहां तक की घरों में भी सुरक्षित नहीं है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था KAILASH SATYARTHI CHILDREN’S FOUNDATION झारखण्ड और आस पास के राज्य के 131 गांव में बाल मित्र का कार्यक्रम चला रही है। उन्होंने राज्य के सभी विधायकों और मंत्रियों से आग्रह किया कि वे इन 131 गांवों में जा कर यहां चल रहे बाल मित्र कार्यक्रम को देखें। उन्होंने आश्वासन दिया कि अगर सरकार चाहे तो उनकी संस्था विधायकों और जनप्रतिनिधियों को आदर्श ग्राम बनाने में उनकी मदद करेगी। उन्होने कहा कि KAILASH SATYARTHI CHILDREN’S FOUNDATION जल्द ही कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा सुरक्षित बचपन सुरक्षित भारत अभियान को सफल बनाने के लिए करेगी।
व्याख्यान समारोह में राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, विधान सभा अध्यक्ष श्री दिनेश उरांव, कैलाश सत्यार्थी की पत्नी श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी, खाद्य एवं सहकारिता विभाग के मंत्री श्री सरयू राय, शिक्षा मंत्री श्रीमती नीरा यादव, महिला बाल विकास एवं कल्याण विभाग की मंत्री श्रीमती लुईस मरांडी, पर्यटन विभाग के मंत्री श्री अमर कुमार बाउरी, श्रम मंत्री श्री राज पलिवार, मुख्य सचिव श्रीमती राजबाला वर्मा, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री संजय कुमार, विधान सभा के प्रभारी सचिव श्री बिनय कुमार सिहं सहित स्वयंसेवी संस्था के प्रतिनिधी, और अन्य अधिकारी मौजूद थे।

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