रांची-जल बरबादी होने से रोके-सरयू राय

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रांचीः

जल की बर्बादी विकास से जुड़ी है. आज हम अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए जिन वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं, उनमें काफी पानी की खपत होती है. जो पानी विकास के कारकों में उपयग हो रहा है वह या तो भूगर्भ से मिलता अथवा सतह से. और इन दोनों में लगातार कमी आती जा रही है. ये बातें राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने विश्व जल दिवस के मौके पर रांची विवि के भूगर्भशास्त्र विभाग में आयोजित कार्यशाल में बतौर मुख्य अतिथि कही. वाटर एंड वेस्ट वाटर विषय पर इस कार्यशाला का आयोजन भूगर्भ शास्त्र विभाग, रांची विवि, नेचर फाउंडेशन तथा युगांतर भारती ने किया था.

श्री राय ने कहा कि अमेरिका में जब औद्योगिकीकरण की शुरुआत हुई तो नदियों में औद्योगिक कचरा युक्त पानी बहाये जाने के कारण स्थिति इतनी विकट हो गयी कि पानी में तेल की परत के कारण नदियों में आग लगने लगी. फिर जनता में इसके खिलाफ प्रतिक्रिया हुई. जनांदोलन हुए, तब 1972 में स्टॉकहोम कांफ्रेस में पर्यावरण प्रदूषण पर चर्चा हुई. एक चार्टर बना जिस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी हस्ताक्षर किया. उसक बाद भारत में भी 1974 में जल अधिनियम बना, जो पर्यावरण चिंताओं से जुड़ा देश का पहला अधिनियम था. श्री राय ने कहा कि विकास जरूरी है लेकिन इसके कुप्रभावों को न्यूनतम किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारी रोजमर्रा की गतिविधियों से भी पानी प्रदूषित और बरबाद हो रहा है. ग्रामीण और जनजातीय लोगों में पानी का बेहतर इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति होती है. नदियों में मात्र 2 फीसदी शुद्ध जल है, और उसे हम उद्योग, सिंचाई, पेयजल सबके काम में लाते हैं और फिर उपयोग किये गये गंदे पानी को वापस नदी में छोड़ कर उन्हें बर्बाद कर रहे हैं. उन्होंने पानी के सीमित और संतुलित इस्तेमाल पर बल दिया.

कार्यशाला के मुख्य वक्ता सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के क्षेत्रीय प्रभारी अधिकारी गौतम कुमार रॉय ने विश्व जल दिवस-2017 के थीम वाई वेस्ट वाटर चर्चा करते हुई रांची की स्थिति के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि डोरंडा में जलस्तर 25-30 मीटर नीचे चला गया है. कांके में 22 तथा मोरहाबादी में 16-17 मीटर नीचे चला गया है. ऐसे में जागरूक नहीं हुए तो स्थिति भयावह हो जायेगी. कार्याशाला को रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश पांडेय ने भी संबोधित किया.

कार्यशाला में नेचर फाउंडेशन की पत्रिका युगांतर प्रकृति का विमोचन भी किया गया. इस अवसर पर भूगर्भ शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ पीके वर्मा, कार्यशाला के संयोजक डॉ उदय कुमार, युगांतर भारती की अध्यक्ष मधु, युगांतर प्रकृति के संपादक आनंद कुमार, शिक्षक-छात्र उपस्थित थे.

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