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Home » मधेपुरा-कथा श्रवण जन्म-जन्मांतर के पुण्य का फल -संत श्रीनारायण दास
बिहार

मधेपुरा-कथा श्रवण जन्म-जन्मांतर के पुण्य का फल -संत श्रीनारायण दास

BJNN DeskBy BJNN DeskMarch 31, 2017No Comments3 Mins Read
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संजय कुमार सुमन
मधेपुरा
श्रीमदभागवत कथा श्रवण करने से जीव चक्रधारी पद में पहुॅचकर जीवात्मा जीवन और मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। कलियुग में भागवत कथा तन मन के विकार दूर करने का सबसे सुगम साधन है।कथा श्रवण जन्म-जन्मांतर के पुण्य का फल है।
उक्त बातें संत श्रीनारायण दास जी महाराज’राधेय’ ने कही।वे चौसा में आयोजित 11दिवसीय श्री भागवत महाकुम्भ के पहले दिन श्रद्धालुओ को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम के पहले दिन मुख्य यजमान रामशंकर चौरसिया दंपत्ति ने भागवत पीठ की पूजा प्रमोद प्रियदर्शी के द्वारा किया।

उन्होंने कहा कि बड़े भाग से मनुष्य का तन मिलता है और बड़े सौभाग्य से मनुष्य को कथा सुनने का मौका मिलता है। जैसे गंगाजल पुराना नहीं होता, वैसे ही कथा भी कभी पुरानी नहीं होती। कथा श्रवण से तीन प्रकार के पापों का निवारण होता है और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैसे सब नदियों में गंगा श्रेष्ठ है, उसी तरह 18 पुराणों में श्रीमद् भागवद श्रेष्ठ है। कथा का पहला दिन था। बीच-बीच में महाराज भजन-श्रीमदभागवत कथा श्रवण करने से जीव चक्रधारी पद में पहुॅचकर जीवात्मा जीवन और मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। कलियुग में भागवत कथा तन मन के विकार दूर करने का सबसे सुगम साधन है।

संत श्री नारायण दासने कहा कि भागवत महापुराण में समुद्र मंथन प्रसंग पर चैदह रत्नों और मोहिनी अवतार की कथा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया। जब दुर्वाषा ऋषि के शाप से इन्द्र के लक्ष्मी विहीन हो जाने पर भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का विचार किया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर अपने उपर मंदिराचल पर्वत को धारण किया। वासुकीे नाग की रस्सी बनाकर मुॅह की तरफ दैत्यों को तथा पूॅछ की तरफ देवताओं को बिठाकर समुद्र मंथन प्रारम्भ किया गया। मंथन से विष निकला जिसे महादेव ने कंठ में धारण कर लिया। वारूणी देवी, पारिजात वृक्ष, कौस्तुभमणि, लक्ष्मी जी तथा अन्य दिव्य अप्सरायें आदि निकलीं। धन्वन्तरि जब अमृत कलश लेकर निकले तो दैत्य उस पर झपट पड़े। तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। और अमृत देवताओं को दिया। उन्होंने कहा कि अन्य युुगों में तो कठोर परिश्रम के द्वारा भगवान को प्रसन्न करना पड़ता था किन्तु कलियुग में तो निस्वार्थ भाव से सिर्फ कथा के श्रवण करने मात्र से जीव के सारे विकार दूर हो जाते हैं और वह भव बन्धन से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।उन्होंने आमलोगों से दूसरे की ना तो निंदा करने और ना ही सुनने का आह्वान किया।उन्होंने विस्तृत रूप से भागवत कथा पर चर्चा करते हुए कई भक्ति गीतों को भी प्रस्तुत किया।

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