मधुबनी: 9 सिंतबर को आयाची मिश्र के मूर्ति का अनावरण करेंगें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विजय कुमार चौधरी।

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अजय धारी सिंह

मधुबनी: माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विजय कुमार चौधरी 9 सिंतबर को आयाची डीह पर आयाची मिश्र के मूर्ति का अनावरण करेंगें। मिथिला के प्रसिद्ध पंडित म.म.भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध आयाची मिश्र का पांडित्य उनके पुत्र एवं शिष्य शंकर मिश्र की कृतियों में देखा जा सकता है। शंकर मिश्र अपने दार्शनिक ग्रंथों में आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि मेरी व्याख्या जिसने नही देखी है और मेरे पिता की व्याख्या जिसने नही सुनी है वह आत्मतत्व विवेक की व्याख्या नहीं कर सकता है। अपने अग्रज जीवनाथ मिश्र से आयाची ने शास्त्र का अध्यन किया था और अपनी अदित विद्या उन्होंने अपने बेटे और शिष्य शंकर मिश्र को दी थी। उपरोक्त बातें अयाची-डीह विकाश समिति, सरिसब-पाहि, मधुबनी के द्वारा आयोजन संवाददाता सम्मेलन में समिति के अध्यक्ष डॉ किशोर नाथ झा ने कही।
डॉ किशोर नाथ झा की पत्नी और साहित्य पुरस्कार पा चुकी नीरजा रेणु ने कहा कि आयाची ज्ञान के खान थे। चिंतन, मनन के बाद तो उन्हें याचना/ माँगने का समय ही नही होता था जो वे किसी से याचना करते।

समिति के उपाध्यक्ष डॉ जगदीश मिश्र ने कहा कि आयाची मिस्र ने कभी याचना नही की इसलिए उनका नाम आयाची पड़ा। यदि कोई उन्हें कुछ दे भी देता था तो वे उसे ग्रहण नही करतें थे। म.म.भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध आयाची मिश्र सुख सुविधाओं का परित्याग कर पठन पाठन के व्यसनी बन अद्भुत विद्यापीठ का निर्माण किया। उन्होंने अयाचना-व्रत का व्रती बन समाज में एक आदर्श उपस्थिति किया।

वहीं समिति के सचिव प्रोफेसर विद्यानंद झा ने कहा कि शंकर मिश्र के जन्म के समय तत्कालीन व्यवस्था को भी आयाची पूर्ण नही कर सके। तत्कालीन महाराज को जब इसकी जानकारी मिली तो महाराज ने आयाची को संवाद दे कर बुलाया। दरबार में महाराज के द्वारा जितनी भी इक्चा हो उतनी स्वर्ण देने की पेशकश के बाबजूद आयाची मिश्र की पत्नी ने केवल एक अंजुल ही स्वर्ण मुद्रा ली। और वो स्वर्ण मुद्राएँ भी आयाची की पत्नी ने उस दाई को दे दी। दाई ने उस स्वर्ण मुद्रा से तालाब खुदवाने सहित जनता के उपयोग में आने वाले कार्य किये। अगर दाई चाहती तो वो स्वर्ण मुद्राएं खुद भी रख सकती थी। इससे उस समय की सामाजिक स्थिति और सोच परिलक्षित होती है।

आयाची मिश्र के शिक्षण-शैली की जानकारी देते हुए आयाची मिश्र के वंशज जीवनाथ मिश्र ने कहा कि चापडी शैली के प्रतिष्ठापक आयाची मिश्र निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था के आग्रही थे। वे अपने एक शिष्य को दीक्षित कर दस शिष्य को शिक्षित करने का दायित्व सौंपते थे। पुंनः उनके वे दस शिष्य सौ और छात्रों दीक्षित कर इस शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ाते थे।

आयाची ने विद्या का प्रसार किया वहीं विद्यापति की गीत को गंठ के माध्यम से बंगाल एवं अन्य जगहों में प्रसार हुआ। आयाची का डीह और बगीचा ज्यादा बड़ा नही था। उनके बगीचा में उन्हें स्वर्ण मुद्राएँ से भरा एक घड़ा मिला तो उन्होंने उसे राजा को सौंप दिया। क्योँकि उन्होंने कहा कि गड़ा हुआ धन राजा का होता है।

आयाची डीह समिति के संरक्षक नवीन जैसवाल ने बताया कि आगामी 9 सिंतबर को आयाची डीह पर आयाची मिश्र के मूर्ति का अनावरण होगा। बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार विधान सभा के माननीय अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने समारोह में मुख्य अतिथि बनने हेतु निमंत्रण स्वीकार कर लिया है।

कार्यक्रम की जानकारी देते हुए चेतना समिति के सचिव सह आयोजन समिति के उपाध्यक्ष उमेश मिश्र ने बताया की इस आयोजन का उद्देश्य मुख्यतः मिथिला की प्राचीन गौरवशाली परंपरा से सामान्य जनों तथा देश के अन्य भागों के प्रबुद्ध जनों को मिथिला के बौद्धिक सम्पदा से अवगत कराना है।

समिति के संयुक्त सचिव उदय कुमार झा ने कहा कि सरिसब पाहि के 7-8 गाँव मिला कर 70-80 साल पहले कर्मवीर आश्रम की स्थापना की गई थी। डॉ राजेन्द्र प्रसाद भी कर्मवीर आश्रम आये थे। सब लोगों ने मिलकर एक समिति बनाई जिसका उद्देश्य केवल आयाची मिश्र के मूर्ति का अनावरण ही नही अपितु हर वर्ष कुछ न कुछ कार्य करते रहने की है।

समिति के सदस्य अमल कुमार झा ने कहा कि आयाची-डीह विकाश समिति के नाम को अगर गौर करें तो क्या दिखता है। सब्सिडी की दुनिया में आयाची कह रहें हैं कि हम अपने संसाधनों को खुद अर्जित करेंगें। हमे क्या मिला, डीह किसका, फ्लैट कल्चर, याचना के लिए हाथ फैलाने से रोकने की कल्चर का विकाश करना ही इस समिति का उद्देश्य है। मिथिला माँगने में विश्वास नही रखता अपितु मिथिला सम्पूर्ण विश्व को देने में विश्वाश रखता है।
इस अवसर पर संयोजक रामबहादुर चौधरी, अजित आज़ाद, प्रो. अशर्फी कामत, सतीश साजन, अनुराग मिश्र, मो.निजामुद्दीन सहित कई गणमान्य उपस्थित थे।

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