विजय सिंह,बी.जे.एन.एन.ब्यूरो,नई दिल्ली, १२.फरवरी ,२०१५
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को मिली अपार सफलता और भाजपा की करारी हार से अब लालू प्रसाद यादव ,नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव केजरीवाल के कंधे पर सवार होकर बहु महत्वाकांछी “महागठबंधन” की बृहत् संभावनाओं को देख रहे हैं. दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं और केजरीवाल के सहयोग से भाजपा और विशेषतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आने वाले कुछ महीनों में बिहार और अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में नेस्तनाबूद करने की रणनीति बनाने में जुटे हैं. दिल्ली चुनाव के महाविजय को केजरीवाल यदि अन्य राज्यों से जोड़ेंगे तो शायद केजरीवाल की बड़ी भूल होगी क्योंकि दिल्ली का चुनाव अन्य राज्यों से भिन्न था और लोग केजरीवाल के रूप में नई आशा का संचार होता देख रहे थे. ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि करारी हार और जबरदस्त भीतरघात के बावजूद दिल्ली में भाजपा के वोट प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं पड़ा.यानि आम जनता का रुझान अभी भी भाजपा के वर्त्तमान में सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर से खत्म नहीं हुआ है .अरविन्द केजरीवाल का अति विरोध और “सस्ते ” बयानबाजी भी भाजपा को पीछे धकेलने में सहायक रहा. भाजपा को केजरीवाल या आम आदमी पार्टी के वनिस्पत अपने ही चक्रव्यूह से ज्यादा नुकसान हुआ है.
जहाँ तक बिहार की बात है तो बिहार के सत्ता शीर्ष पर लम्बे समय तक कुंडली मार कर बैठे रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और चारा घोटाले में उनके जेल जाने के बाद बिहार की मुख्यमंत्री पद सँभालने वाली उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने बिहार में ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य जनता के लिए नहीं किया जिससे आने वाले चुनाव में जनता पुनः उनको सत्ता सौंपे.जरूरी मानवीय संसाधनों के अभाव और बढ़ते आपराधिक ग्राफ की वजह से ही बिहार की जनता ने तब जदयू के नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा -जदयू गठबंधन को सर आँखों पर बैठाया था और सत्ता की चाभी सौंपी थी.लेकिन बिहार में नीतीश कुमार सड़क और अपराध नियंत्रण के अतिरिक्त ज्यादा कुछ नहीं कर पाये. शिक्षा और रोजगार के लिए बिहार से पलायन हर दिन बढ़ा ही है . भाजपा से गठबंधन तोडना और फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने ही चहेते जीतन राम मांझी को सौपने का “स्टंट” करने के बाद अब पुनः मुख्यमंत्री पद पाने के लिए जिस तरह से नीतीश भाग दौड़ कर रहे हैं ,राजनीति में तो वह स्वाभाविक प्रक्रिया कही जा सकती है लेकिन मतदाता भी इसे स्वाभाविक रूप में ही लेंगे, यह तो चुनाव के समय ही मालूम चलेगा.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को भी ‘गंगा” में हाथ धोने का मौका जैसा मिल गया और लगे हाथ वो भी केजरीवाल को नए “मांझी “के रूप में देखने लगे. नई दिल्ली के ७ रेस कोर्स रोड में रहने का मंसूबा पाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी केजरीवाल को खेवनहार के रूप में देख रहे हैं.कांग्रेस फ़िलहाल कुछ विशेष कहने की स्थिति में नहीं है .
हमें लगता है कि दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार से भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कमजोर समझना जल्दीबाजी और बड़ी भूल होगी.
Comments are closed.