जमशेदपुर-मयुराक्षी विवाद मामले में सरयू राय ने सी एम को लिखा पत्र

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जमशेदपुर।

बीते सात अगस्त को कैबिनेट बैठक में मंत्री श्रीमती लुईस मरांडी और माननीय मंत्री श्री अमर बाउरी ने उपर्युक्त विषय में अपना विचार प्रस्तुत किये थे. इस मामले मे उठ रहा विवाद समग्र सोच पर आधारित होना चाहिये. इसका समाधान झारखंड के दुमका जिला और पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिला स्तर पर संभव नही है. यह दोनों राज्यों के मुख्य मंत्रियों/ जल संसाधन मंत्रियों के स्तर पर गम्भीर चर्चा के साथ होना चाहिये जिसमे 1949 और 1978 मे हुये तत्कालीन बिहार राज्य और पश्चिम बंगाल राज्य के बीच हुये द्विपक्षीय समझौतों तथा 1994 में द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग के विश्लेषणों एवं सुझावों के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का संदर्भ लिया जाना चाहिये.1991 में गठित द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग की जिस उपसमिति ने तत्कालीन बिहार राज्य और पड़ोसी राज्यों तथा नेपाल के बीच हुये द्विपक्षीय/ त्रिपक्षीय समझौतों पर पुनर्विचार किया था और इनमें संशोधन-परिवर्द्धन का सुझाव दिया था मुझे उस उपसमिति का पूर्णकालीन अध्यक्ष होने का अवसर मिला था. हमने वर्तमान झारखंड राज्य के जिन जल समझौतों पर गहन अध्ययन के उपरांत विचार एवं सुझाव दिया था उनमें दामोदर- बराकर, स्वर्णरेखा- खरकई, अजय और मयूराक्षी-सिद्धेश्वरी- नूनबिल नदियों के जल बँटवारा पर बिहार,बंगाल और ओड़िसा सरकारों के बीच हुये द्विपक्षीय/त्रिपक्षीय समझौते शामिल थे. आयोग ने अपनी अनुशंसा मे इन सभी जल बँटवारा समझौतों मे तत्कालीन बिहार, अब झारखंड , सरकार को स्पष्ट सुझाव दिया था कि इन समझौतों मे इस राज्य के हितों की उपेक्षा हुई है और जनहित मे इनपर नये सिरे से विचार होना आवश्यक है. अफ़सोस है कि आयोग का प्रतिवेदन सौंपे जाने के बाद 6 वर्षों तक बिहार ने और 18 वर्षों तक झारखंड ने द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग की अनुशंसाओं पर अमल करने मे रुचि नही दिखाया और अब विवाद शुरू हुआ है तो वह जनहित के मुद्दों पर आधारित नही है बल्कि मसानजोर डैम की दीवार के रंग पर और सड़क पर खड़ा की जा रही होर्डिंग में राज्य का चिन्ह (“लोगो”) के विवाद पर केन्द्रित हो गया है.

 

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मसानजोर डैम बनते समय पर बिहार और बंगाल के बीच 12 मार्च 1949 को मयूराक्षी जल बँटवारा पर पहला समझौता हुआ था. इसमे देवघर की त्रिकुट पहाड़ी से निकलकर करीब 203 किलोमीटर तक बहने वाली मयूराक्षी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 8,530 वर्ग किलोमीटर में से 2070 वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र झारखंड में और शेष 6460 वर्ग किलोमीटर बंगाल मे है. इसमें मसानजोर जलाशय से तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) में 81,000 हेक्टेयर ज़मीन की ख़रीफ़ फ़सल और 1050 हेक्टेयर पर रब्बी फ़सल की तथा पश्चिम बंगाल में 2,26720 हेक्टेयर ख़रीफ़ और 20,240 हेक्टेयर रब्बी फ़सलों की सिंचाई होने का प्रावधान किया गया था.

समझौता के अनुसार निर्माण, मरम्मत तथा विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को वाहन करना है. इतना ही विस्थापितों को सिंचित ज़मीन भी देनी थी.

दूसरा समझौता 19 जुलाई 1978 को हुआ था जिसमें मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नून बिल के जल बँटवारा को भी शामिल किया था. इसके अनुसार मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फ़ीट से नीचे नही आये इसका ध्यान बंगाल सरकार को पानी लेते समय हर हालत में रखना था ताकि झारखंड के दुमका जिसे की सिंचाई प्रभावित नही हो. बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी – नूनबिल डैम बनाना था जिसमें झारखंड के लिये डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10,000 एकड़ फ़ीट पानी दुमका जिला के रामेश्वर क्षेत्र के लिये रिजर्व रखना था. सिंचाई आयोग ने पाया था कि मसानजोर डैम के पानी का जलस्तर हर साल 363 फ़ीट से काफी नीचे आ जाता था कारण कि बंगाल डैम से ज़्यादा पानी लेता था. मसानजोर डैम से दुमका जिला की सिचाई के लिये पम्प लगे थे वे हमेशा ख़राब रहते थे जबकि इनकी मरम्मत बंगाल सरकार को करनी है. संक्षेप मे कहा जाय तो झारखंड सरकार मेंभी और उसके पहले बिहार ने भी कभी यह नही देखा कि मसानजोर से पानी बँटवारे के समझौता का हमेशा उलंघन होते रहा है और झारखंड सरकार मौन साधे रहे हैं.आवश्यक है कि इस बारे मे राज्यहित और व्यापक जनहित में द्वितीय बिहार राज्य सिचाई आयोग के सुझावों पर अमल किया जाय ताकि पूर्व के द्विपक्षीय समझौता मे संशोधन किया जा सके. इसके लिये जल संसाधन सचिव/मुख्य सचिव/मंत्री स्तर/ मुख्य मंत्री स्तर की बैठके झारखंड सरकार और बंगाल सरकार के बीच विभिन्न स्तर पर आयोजित करने की पहल की जाय.

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