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कंपनी ने जैव-विविधता संतुलन कायम रखने में सांपों के महत्व को रेखांकित किया
चाईबासा।
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टाटा स्टील ने विश्व वन दिवस के अवसर पर आज सभी स्टेकहोल्डरों के साथ एक अनूठा कार्यक्रम ‘सांप दोस्त होते हैं’ का आयोजन किया। इस वर्ष विश्व वन दिवस का थीम ‘वन और ऊर्जा’ था। टाटा स्टील ने वनों और सांपों के महत्व को रेखांकित करते हुए इस विषय पर विशेष जोर दिया कि किस प्रकार ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण वन प्रभावित हो रहे हैं।
जगन्नाथपुर की विधायक श्रीमती गीता कोड़ा कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। कार्यक्रम में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ’’विश्व वन दिवस के अवसर पर टाटा स्टील द्वारा चुना गया विषय काफी दिलचस्प है। हर दिन सांपों की नयी प्रजातियांें की खोज हो रही है। हमें सांपों से होने वाले फायदों को समझने की जरूरत है।’’
इस मौके पर ‘स्नेक हेल्पलाइन’ के संस्थापक सह जेनरल सेक्रेट्री तथा खुर्दा जिला के वाइल्ड लाइफ वार्डन श्री शुभेंदु मलिक ने सांपों से जुड़े मिथकों का समाधान किया तथा सर्पदंश की दशा में हाॅस्पीटल जाने की सलाह दी।
आईयूसीएन के प्रोग्राम आॅफिसर श्री विपुल शर्मा ने विश्व वन दिवस समारोह मनाने के पीछे की कहानी बतायी। नोआमुंडी के फाॅरेस्ट रेंजर श्री आनंद बिहारी ने इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करने और सभी स्टेकहोल्डरों को एक मंच पर एक साथ लाने के लिए टाटा स्टील को बधाई दी।
जमशेदपुर के सर्प विशेषज्ञ श्री एन के सिंह और श्री असगर इमाम ने इस तथ्य को दोहराया कि अधिकांश सांप मानव के लिए हानिकारक नहीं होते हैं।
श्री पंकज सतीजा, जीएम, ओएमक्यू, टाटा स्टील ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘सांप हमारे दोस्त होते हैं, क्योंकि ये जैव-विविधता संतुलन कायम रखने में मदद करते हैं। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय जैव-विविधता लक्ष्य की दिशा में हमारा छोटा-सा योगदान है, जो वर्ष 2020 तक कृषि, वन और मत्स्य पालन में टिकाऊ प्रबंधन उपायों को अपनाने की बात कहता है। इस प्रकार के कार्यक्रम जागरुकता पैदा करेंगे, जो अंततः जैव-विविधता और परितंत्र के प्रभावी व एक समान संरक्षण की ओर ले जायेंगे।
वन दिवस से बच्चों को जोड़ने के लिए ‘सांप दोस्त होते हैं’ विषय पर आधरित चित्रांकन प्रतियोगिता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। ‘हो महासभा’ के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत प्रहसन और राजस्थान का लोकनृत्य ’कालबेलिया’ कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण थे। विदित हो कि सांप पकड़ना और उनके जहर का व्यापार करना कालबेलियों का परंपरागत पेशा है। वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के लागू होने के बाद कालबेलिया समुदाय को इस पेशे से दूर होना पड़ा। आजकल लोककला प्रदर्शन ही उनकी आय का मुख्य स्रोत है। आज के कार्यक्रम में उन्होंने प्रतिभागियों के साथ अपने अनुभवों को साझा किया। इस अवसर पर देसी वैद्यों द्वारा लगाये गये स्टाल में बीमारियों के ईलाज में परंपरागत औषधियों के इस्तेमाल को दर्शाया गया। झारखंड के जनजातीय व्यंजनों के प्रचार-प्रसार के लिए भी स्टाल लगाये गये थे।
दूसरी ओर, खोंदबोंद में वन व पर्यावरण पर सामान्य जागरूकता सत्रों और जोडा में कालबेलिया नृत्य की एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। टाटा स्टील नोआमुंडी में जैव-विविधता को लेकर लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए ‘प्रजातीय खाद्योत्सव’, ‘प्रजाति पहचानों‘ और ‘जैव-कला विविधता‘ जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करती है।
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