कुछ अलग – राजनीतिक व्यंग – प्रकाशनार्थ – सीडीयों का महात्म्य

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विक्रमा आदित्य सिह(मधेपूर वाले)

जमाना खुद को दोहराता है – बात साबित हो गयी है जनाब। सीडी 15-20 साल पहले समसामयिक थी, अब मुख्य धारा से दूर छिंटक के विपक्ष में बैठ गयी है। वो तो भला हो पार्टी लेबलधारी महानुभावों का जिन्होंने सीडी को विलुप्त होने से रोका हुआ है। प्रयोग बदल गए हैं-पहले सिनेमा के गीत सुने देखे जाते थे अब व्यक्तिगत नाटिकाएं प्रचारित की जाती हैं।

जैसे क्रिकेट के खेल में गूगली होती है, सरकार के पास टैक्स होती है, मास्टर जी के पास छड़ी और लाल कलम होती है ठीक वैसे ही आज की राजनीति में सीडी होती है। एकदम “ब्रह्मास्त्र” माफिक, कौनो तरीके से सामने वाले का विकेट उखाड़ना ही है। जैसे ही सीडी आयी वैसे ही जनता जनार्दन देखने में और कलाकार सफाई देने में व्यस्त हो जाते हैं। एक अनुक्रम है जैसे – आरोप, प्रत्यारोप, आक्षेप, पटाक्षेप, बयान जारी, जारी बयान पर प्रेस वार्ता, प्रेस वार्ता के जवाब में एक और प्रेस वार्ता, संसद में प्रश्न – मोदी इस्तीफ़ा दें, सन्नाटा, दुइ दिन की खामोशी और एक दिन सीडी वितरण।

पार्टियों ने बाकायदा टीम बना रखी है -फेसबुक, ट्विटर पर पोस्ट करने वाले अलग और सीडी बनाने वाले अलग। (क्षमा चाहूंगा यहाँ साधारण कार्यकर्ताओं की बात नहीं कर रहा हूँ, वो तो बचपन से झंडा ही उठाते रहे हैं, वही करते रहेंगे, इनका विकास यहीं तक सीमित है।)

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सोचता हूँ कि जब सीडी असामयिक हो गयी है तो फिर इसका प्रयोग क्यों हो रहा है? दूसरा कोई उचित जरिया क्यूँ नहीं प्रयोग किया जा रहा, 17 मिनट सोचने पर ये निष्कर्ष निकला –

१. सीडी खुदरा में दस रूपये की और थोक में साढ़े चार रूपये की आती है।
२. एक लाख कॉपी बना के भी बाँट दी तो बजट में ही रहे।
३. पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड पर चले तो बर्बाद हो जायेंगे।
४. किसी वेबसाइट पे अपलोड किया तो उम्मीद है कि लिंक ब्लॉक कर दिया जाय। अपलोड करने वाले की जानकारी भी सार्वजनिक हो गयी।
५. मोबाइल स्रोत पर भी वायरल करने का अपना नफा नुक्सान है, पुलिस खोज के पकड़ ले आये। मोबाइल के मार्किट ऑडियंस भी सीमित हैं।
६. सीडी बना के प्रेस वार्ता कर सकते हैं, पचासियों अख़बार, मीडिया के दफ्तर भिजवा सकते हैं। (कवर लेटर के साथ)
७. रोजगार में वृद्धि – रिकॉर्ड कोई करेगा – सिस्टम में कोई और डालेगा – टेक्निकल काम कोई और – विपणन और वितरण अलग से।

टीवी में सामान बेचने वाली कंपनियां भी लगे हाथ गंगा नहाने में व्यस्त हैं। छुपछुपके रिकॉर्डिंग करने के लिए कलम, की रिंग इत्यादि बेच रही हैं मानो सीडी निर्माण को बढ़ावा देने वाली कोई सिस्टर कंसर्न हो। आर्डर कोई भी कर सकता है – कम्पनी नाम, उम्र, प्रयोजन पूछेगी नहीं और बस 699 भुगतान करो और घर बैठे चोर कैमरा पाओ। कम से कम इस प्रक्रिया को आधार लिंक करवाया जाय ताकि कुछ अस्मिता बची रहे।

और ये सीडी देखता कौन है ?? साधारण आदमी परिवार के साथ देखेगा नहीं। बिजनेसमैन जो अपने कर्मचारी का मुखड़ा ठीक से नहीं देखते वो क्या सीडी देखेंगे? जिन टुच्चों को देखने की सनक है वो अच्छे वाला देखेंगे न कि ये वाला। तो फिर इसका टारगेट दर्शक वर्ग कौन सा है? जिस दिन समझ आ जायेगा बताऊंगा। मुझसे पहले कोई समझ जाएँ तो सूचित कर दें।

मेरे लैपटॉप की सीडी प्लेयर ख़राब पड़ी है – सर्विस सेंटर वाले कहते हैं कि जंग लग गयी है क्यूंकि प्रयोग में नहीं है। अमां कभी लगायी ही नहीं, आधे से बेसी काम तो मोबाइल से होता है। कल को कोई सीडी के बदले ओटीजी बांटे फिर हम देखने की चेष्टा करेंगे।

भैया माफ़ करो अब सीडी को, उसकी नेचुरल डेथ हो चुकी है। कब तक उसी को रपेटते रहोगे?

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