गर्मी के दिनों में घर – घर में देसी फ्रिज के नाम से मशहुर सुराही इकिस्वीं सदी में बिलुपती के कगार पे है | घटते मांग की वजह से आज सुराही बनने वाले कारीगर [ कुम्हार ] को दो जूं की रोटी का जुगाड़ करना भी मुस्किल हो पड़ा है |
ये नजारा रामगढ जिले के कुज्जू छेत्र स्थित सांडी का है मिटटी को तरास कर मिटटी के बर्तनबनने वाले ये कुम्हार करीब बीस वर्षों से इस छेत्र में रह रहे है | धीरे – धीरे अब यह कारीगरी बड़ीमुस्किल से यदा कदा कहीं देखने को मिलती है | एक शमय यह भी था जब गर्मी की आहत शुरू होतेही इनके हाथों के बने देसी फ्रिज सुराही की मांग बाजारों में बढ़ जाती थी | लेकिन इक्कीसवीं सदीमें धीरे – धीरे लोगों का इलेक्ट्रिक फ्रिज के पर्ती रुझान हुआ और धीरे -धीरे बाजार में देसी फ्रिज कीमांग न होने की वजह से इसके प्रचालन में गिरावट आई | जिसका असर इन कुम्हारों पर सीधापड़ा | कल तक दर्जनों की संख्या में रोजाना बिकने वाली सुराही आज एक दो की संख्या पे आ करअटक गई है कई पुस्तों से इस काम में लगे लोगों का कहना है की कल तक इसकी कमाई सेबरसात के समय में जब मिटटी की बर्तनों की मांग बाजार में नहीं होती है तो इसी कमाई से गुजराचलता था लेकिन अब समय बदल गया है गर्मी के दिनों में ही मांग न होने की वजह से इस समय हीदो वकत की रोटी का जुगाड़ करना उनके लिए भारी पड़ रहा है यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहींजब बाजारों से मिटटी के बर्तन गायब हो जायेंगे और पेट की आग इन कुम्हारों को किसी दुसरेव्यवसाई की और मोड़ देगा और तब ये बाते किताब के पन्नो में ही सिम्मत कर रह जायेंगे