*अजय धारी सिंह*
सकरी-झंझारपुर- लौकहा बाजार रेलखंड पर आज मध्यरात्रि तक ही दौड़ेगी नैरोगेज ट्रेन।
ज्ञात हो कि सकरी-झंझारपुर- लौकहा बाजार रेलखंड का आमान परिवर्तन की चिर प्रतीक्षित माँग को रेलवे कब पूरा करेगी ये लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ था। इस रेलखंड पर आज आखरी बार रेल दौड़ेगी।
भारत में रेल के आगमन के महज 20 वर्ष के बाद ही तिरहुत रेलवे ने अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। इसी कड़ी में सन् 1876 में तत्कालीन जनप्रिय महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने झंझारपुर को रेल से पूरे देश से जोड़ दिया था। देश की शान और मिथिला की पहचान तिरहुत रेलवे तो अब नही रहा लेकिन उसकी लोहे की पटरियां और पुल अभी भी लोगों को अपनी मंजिल पर पहुँचा रही है। झंझारपुर से पहले बहने वाली कमला पर पुल भी महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने ही बनवाया था। उस समय इस पुल को बनाना बहुत ही चुनौती भरा काम था लेकिन महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने इस कठिन कार्य का बीड़ा उठाया और उन्होंने रेल सह सड़क पुल बनवाया जो एशिया में अपनी तरह का इकलौता पुल है। अपने जनता को उन्होंने रेल का तोहफा ही नही दिया एक नया द्वार खोल दिया।
तिरहुत रेलवे के द्वारा ही मिथिला के दोनों भाग एक दूसरे से कोसी पुल के द्वारा जुड़े थे। लेकिन 1934 के भूकंप में मिथिला के दोनों भागो को जोड़ने वाली कोसी के पुल के क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद मिथिला को आज तक रेलवे द्वारा पुंनः जोड़ा नही जा सका। हाल के वर्षों में मधुबनी जिले के जयनगर-दरभंगा रेलखंड का आमान परिवर्तन जरूर हुआ। लेकिन सकरी से आगे की रेल लाइन और रेल यात्री की प्रतिक्षा करते रहे आँखें ही पथरा गयी थी।
सकरी-झंझारपुर- लौकहा बाजार रेलखंड का आमान परिवर्तन लोगों को देश के सभी जगह से बड़ी लाइन से जरूर जोड़ देगा। परंतु जिस रेलखंड पर 1876 में रेल के पहिये दौर चुके हैं वहाँ का आमान परिवर्तन अब होना यहाँ के लोगों को देश के विकास के साथ तो कदापि नही जोड़ सकता, क्योकि यहाँ की जनता ने इसका अनुभव पहले ही ले लिया था। हाँ उनके विकशित इतिहास को रोककर, और उसके बाद देश का विकास करना और पुंनः इस मिथिला की इस भूमि की जनता को मीटर गेज का तोहफा देना उनका उपहास ही कहलायेगा। परंतु मिथिला की जनता ने हमेशा त्याग ही किया है, पहले यह इलाका देश की अग्रिम इलाके में गिना जाता था। यहाँ के लोग देश के हर इलाके में अग्रिम पंक्ति में ही हैं और यह रेलखंड का आमान परिवर्तन यहाँ को पुंनः देश की अग्रिम पंक्ति में जरूर खड़ा कर देगा। आइये उस तिरहुत रेलवे को याद करें जिसने भारत में रेल आने के महज 20 साल के बाद यहाँ के लोगों को इन तमाम सुविधाओं से सुसज्जित ही नही किया अपनी अमिट छाप लागों के दिलों पर ऐसी छोड़ी की आज भी लोगों के जुबान पर तिरहुत रेलवे का ही नाम है।
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