कहानी एक खुशनुमा शाम

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देवेन्द्र कुमार

गर्मी की छुट्टियां हो चुकी थीं. इस के साथ ही उज्जवल के इम्तिहान भी खत्म हो चुके थे. वह बेहद खुश नजर आ रहा था. अब वह इत्मिनान के साथ कुछ वक्त अपने मम्मीपापा के साथ घर पर गुजारेगा. उस के कुछ दोस्त भी भुवनेश्वर से ट्रेन पकड़ कर उस के साथ ही जमशेदपुर आने वाले थे. सभी ने अपनाअपना रिजर्वेशन  पहले से ही करा रखा था. हौस्टल के कमरे मानो उन्हें खाने को दौड़ रहे थे. कुछ दिनों के लिए ही सही, वे एक आजाद परिंदे की मानिंद परवाज करने को बेचैन हो रहे थे.
तयशुदा वक्त पर हौस्टल से सभी दोस्त एक साथ निकले. औटोरिक्शा ले कर रेलवे स्टेशन आ गए. पुरुषोत्तम एक्सप्रेस चंद मिनटों में प्लेटफार्म पर आने ही वाली थी. इस की उद्घोषणा की जा रही थी. इस बीच उज्जवल ने मोबाइल से मम्मी से बात की. “मम्मी, आज मेरा अंतिम प्रैक्टिकल भी समाप्त हो गया. कल से हमारा कौलेज बंद हो रहा है. अभी मैं अपने दोस्तों के साथ रेलवे स्टेषन पर हूं. ट्रेन भी आ चुकी है. मैं अपना बर्थ खोज रहा हूं. मैं कल सुबह में करीब 5.30 बजे तक जमशेदपुर पहुंच जाऊंगा.”
”ठीक है. तुम अच्छी तरह से ट्रेन में सफर करना. सामान पर निगाह रखना. किसी भी अनजाने से कुछ भी खाना या पीना मत. सुबह में पापा और भैया तुम्हें लेने पहुंच जाएंगे. तुम बिल्कुल चिंता मत करना. तुम अपना ख्याल रखना. वरना हमें तुम्हारी फिक्र लगी रहेगी.”
“नितेश, सुबह 5.00 बजे का अलार्म लगा लो. वरना हम लेट हो जाएंगे.” पापा ने अपना मेल चेक करते हुए कहा.
अलार्म लगा कर नितेश अपने कमरे में सोने चला गया.
“चलो अब उज्जवल के आने से नितेश और सोनिया को भी कंपनी मिल जाएगी. ये दोनों उज्जवल को काफी मिस किया करते थे.” पापा ने मम्मी से कहा.
“उज्जवल भी तो हम सब के बिना कभी रहा नहीं है. बचपन से ही हम सब के साथ रहा है. जीवन में पहली बार उसे हम लोगों से इतनी दूर रहना पड़ रहा है.”
“कोई बात नहीं है. देखते ही देखते चार साल का समय भी गुजर जाएगा. कुछ पाने के लिए तो कुछ खोना ही पड़ता है. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना उज्जवल का सपना था, जो अब बहुत जल्द ही पूरा होने वाला है. कुछ दिनों के लिए ही सही उसे मोटीमोटी किताबों से निजात तो मिलेगी और वह अपने आप को तरोताजा महसूस करेगा हम लोगों के बीच में. साथ में उस के दोस्त भी तो होंगे. उस का मन थोड़ा हल्का हो जाएगा.”
सुबह में अलार्म बजते ही पापा उठ कर तैयार हो गए और नितेश को भी जगा कर तैयार होने को कहा. नितेश ने गैराज से कार निकाली और पापा के साथ चल पड़ा रेलवे स्टेशन की ओर.
टाटानगर जंक्शन  के बाहर में कार पार्क कर पापा और नितेष उज्जवल का इंतजार कर रहे थे. तभी पुरुषोत्तम एक्सप्रेस के आते ही रेलवे स्टेषन के बाहर में भीड़भाड़ अचानक बढ़ गई. उज्जवल अपने दो दोस्तों के साथ ट्रौली बैग लिए आता दिखा. पापा और नितेष पर नजर पड़ते ही उज्जवल पास आ कर बोला, “पापा, अजहर भी साथ में ही चलेगा. इस का घर भी हमारे घर के पास में ही है.”
उज्जवल और अजहर ने अपनेअपने बैग डिक्की में रख दिये और कार की पिछली सीट पर बैठ गए. दोनों थकेथके से लग रहे थे.
घर आने के बाद उज्जवल मम्मी पापा नितेष भैया और सोनिया दीदी से काफी देर तक गपशप करता रहा. हल्केफुल्के नाश्ते  बाद वह आराम से लेट गया. थकावट तो थी ही. लेटते ही नींद ने उसे कब अपने आगोश  में ले लिया था, उसे पता ही नहीं चला.
अगले दिन जब दादी का फोन आया तो दादी ने उसे बड़े प्यार से अपने पास बुलाया. उज्जवल भी दादी के पास जाने को झट से तैयार हो गया. पापा ने बस पड़ाव जा कर पटना के लिए जीवन ज्योति बस में उज्जवल के लिए एक सीट बुक करवा दी.
उज्जवल अगले ही दिन पटना पहुंच गया दादी के पास. दादी उज्जवल को अपने पास पा कर काफी खुष हुई. उज्जवल भी काफी दिनों के बाद दादी के पास गया था. उसे बहुत मजा आ रहा था दादी के साथ. दादी भी उज्जवल के पसंदीदा व्यंजन बना कर खिलाती थी. छोटे अंकल अनिल, छोटी आंटी प्रतिमा, उन की बेटी प्रिंसी भी उज्जवल को अपने पास पा कर काफी खुश थे. खास कर प्रिंसी को बहुत अच्छा लग रहा था. वह तो उज्जवल को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ती थी. दरअसल इतने बड़े घर में तो कोई रहता भी नहीं था. छोटे अंकल और छोटी आंटी प्रति दिन अपनेअपने दफ्तर चले जाते थे. प्रिंसी अपने स्कूल चली जाती थी. लेकिन स्कूल से लौटने के बाद उस के साथ खेलने वाला कोई होता नहीं था. सिर्फ दादी ही उस के साथ रहती थी. इसी बीच अनु की भी छुट्टी हो गई थी. अनु प्रिंसी से बड़ी थी. भुवनेष्वर में ही रह कर वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी. लेकिन उस का कौलेज उज्जवल के कौलेज से काफी दूर था. वह भी अपनी सहपाठिनों के साथ पटना लौटी थी. अब तो सूनासूना रहने वाला घर काफी भरापूरा लगने लगा था.
“उज्जवल, तुम्हारा बर्थडे भी तो इसी 9 तारीख को ही पड़ रहा है न.” दादी ने अचानक कुछ याद करते हुए पूछा.
“हां है तो. मगर उतने दिनों तक मैं थोड़े ही रुकूंगा. मैं तो वापस जमशेदपुर चला जाऊंगा.” शरारत से इतरा कर उज्जवल ने कहा.
“देखती हूं तुम कैसे नहीं रुकोगे. इस बार तुम्हें यहां रुकना ही पड़ेगा. हम सब मिल कर तुम्हारा बर्थडे सेलीब्रेट करेंगे.” उज्जवल को एक प्यार भरी चपत लगाते हुए दादी ने कहा.
“अरे वाह, तब तो सचमुच बड़ा मजा आएगा. लेकिन दादी, यह बदमाष तो सारा का सारा बर्थडे केक खुद खा जाता है. हम सब को तो केक छूने भी नहीं देगा.” अनु ने उज्जवल को चिढ़ाते हुए कहा.
“देखो न, मैं कितना दुबला हो गया हूं. खाऊंगा नहीं तो काम कैसे चलेगा.” उज्जवल ने नहले पे दहला जड़ते हुए कहा.
“अब तुम्हारी कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी. तुम्हारा बर्थडे यहीं मनाया जाएगा. ठहरो मैं तुम्हारे पापा से इस बारे में बात करती हूं.” दादीजी ने अपने सेल से नंबर मिलाते हुए कहा.
“हैलो टुनटुन, मेरा विचार है कि इस बार उज्जवल का जन्म दिन हम लोग यहीं पर मनाएंगे. तुम लोग भी पटना चले आओ छुट्टी ले कर.”
“लेकिन मम्मी, मुझे छुट्टी बिल्कुल नहीं है. हम लोग पटना एक साथ नहीं आ सकते.” पापा बोले.
“कोई बात नहीं है. इस बार उज्जवल की बर्थडे पार्टी यहीं होगी. तुम्हें कोई ऐतराज तो नही है न ?”
“जैसी आप की मरजी. मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है. लेकिन हम उज्जवल की बर्थडे पार्टी को बहुत मिस करेंगे.”
“इसी लिए तो कहती हूं कि तुम लोग भी आ जाओ तो और अच्छा लगेगा.”
अब तो उज्जवल के बर्थडे को यादगार बनाने की सारी तैयारियां काफी जोरषोर से होने लगीं. उज्जवल के साथसाथ अनु और प्रिंसी के सभी दोस्तों को भी आमंत्रित किया गया. पूरे घर को तरहतरह के फूलों के गमलों से सजाया गया था. चारों तरफ रंगबिरंगे फूल ही फूल दिखाई पड़ रहे थे. कहीं अलगअलग रंग के गुलदाउदी तो कहीं डलिया, बोगेनवेलिया, गेंदा, गुलाब हर रंग के बड़े ही खूबसूरत अंदाज में रखे गए थे. बड़े ही आकर्षक ढंग से कुछ बोंसाई भी लगाए गए थे. आरकेरिया और एरिका पाम भी नजर आ रहे थे. ऊपर से रंगबिरंगी रौषनी तो गजब ढा रही थी. पूरा घर तरहतरह के फूलों की खुषबू से महक उठा था. सचमुच आज तो बर्थडे पार्टी का मजा आ जाएगा.
उस दिन उज्जवल दादी के साथ ऊपर वाले कमरे में गया था. वह देख रहा था कि उस कमरे में बहुत सारे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बेहद हिफाजत के साथ रखे हुए थे. ड्रम सेट, तबला, हारमोनियम, ढोलक, बांसुरी, खंजरी, बैंजो, कांगो, बांगो, गिटार, सिंथेसाइजर और पता नहीं क्याक्या.
“दादी, यह सब यहां पर क्यों पड़ा हुआ है ? यह सब है किस का ?” उज्जवल ने आष्चर्यचकित होते हुए पूछा. “यह सब तो मैं ने कभी देखा नहीं था.”
“तुम यहां रहते ही कहां हो जो देख पाओगे. ये सारे वाद्ययंत्र तुम्हारे जन्म से बहुत पहले के हैं.”
“लेकिन यह है किस का ? इन्हें बजाता कौन था ?”
“यह सब तुम्हारे पापा का है और किस का.”
“पापा का है !”
“हां, तुम्हारे पापा का ही है. तुम्हारे पापा अपने कौलेज के जमाने से ही हारमोनियम, बैंजो, गिटार और सिंथेसाइजर बजाते थे.”
“पापा और हारमोनियम ! यह मैं क्या सुन रहा हूं ? मैं ने तो उन्हें कभी हारमोनियम बजाते नहीं देखा है.”
“बिल्कुल सही सुन रहे हो. तुम्हारे दोनों छोटे चाचा तो इन सब के अलावा कांगो, बांगो भी बजाया करते थे. तीनों भाई गाते भी थे. तीनों अपनेअपने क्लास में गाने के लिए मषहूर रहे हैं. इन तीनों ने मिल कर अपना एक आरकेस्ट्रा भी बनाया हुआ था. उस में बहुत सारे कलाकार आया करते थे और यहीं पर खूब रियाज किया करते थे. आज तुम जो गीत सुन कर झूम उठते हो न, उन ही गीतों को ये सब बड़ी खूबसूरती के साथ परफार्म करते थे. पुलिस सर्विस में जाने से पहले तुम्हारे पापा एफ0 एम0 रेडियो में एनाउंसर भी रह चुके हैं.”
“यह मैं क्या सुन रहा हूं उज्जवल. तुम्हारे पापा और गीत संगीत. कोई पुलिस औफिसर गीतसंगीत का इतना बड़ा शौकीन हो यह तो मैं आज तक जानता ही नहीं था.” उज्जवल के मित्र सुमीत ने कहा.
“वीरेन अंकल तो एक बैंक मैनेजर हैं वे भी संगीत प्रेमी हैं और अनिल अंकल एकाउंट्स की फाइलें ही नहीं चेक करते बल्कि उम्दा किस्म के गायक और वादक भी हैं. अब तो मेरे बर्थडे पर उन्हें गाना ही होगा.” उज्जवल ने कहा.
उज्जवल ने सारे वाद्य यंत्रों को झाड़पोंछ कर साफसुथरा किया और हसरत भरी नजरों से देख रहा था. और सचमुच उज्जवल, अनु, सुमीत और प्रिंसी ने मिलजुल कर सारे वाद्य यंत्रों को बर्थडे पार्टी के दिन बड़े ही करीने से सजा दिया. दादी अलग हैरान हो रही थी कि ये सब मिल कर क्या कर रहे हैं. परेषान हो कर बोली, ”अगर इन साजों को कुछ भी हुआ तो बहुत मार पड़ेगी.”
“दादी, हमारे पास जब इतने बेहतरीन वाद्य यंत्र मौजूद हैं तो फिर क्यों न इन का इस्तेमाल बर्थडे पार्टी के वक्त किया जाए. एक अलग ही समां बंध जाएगा.” उज्जवल ने उत्साहित होते हुए कहा.
“ठीक है. लेकिन जरा संभाल कर रखना इन सब को. तुम्हारे पापा की जान बसती है इन में. कहे देती हूं.”
दादी ने शीतलछाया से बहुत खूबसूरत बर्थडे केक मंगवाया. साथ ही ढेर सारी पेस्ट्री, नमकीन, मिठाइयां, बिस्कुट और टौफियां. खूब सारे गुब्बारे लगाये गये, मिनी बल्ब और खूब लाइट एरेंजमेंट की गई. साउंड सिस्टम भी लगाया गया. खूब डांस हुआ. उज्जवल ने जब केक काटा तो सभी लोग उसे जन्म दिन की ढेर सारी बधाइयां देने लगे. काफी देर तक गूंजता रहा हैप्पी बर्थडे टू यू उज्जवल. दादी तो इतनी खुष थी कि वह भूल ही गईं कि नितेष, सोनिया और पापा मम्मी को उज्जवल के बगैर काफी अजीब सा लग रहा होगा.
“इतने अरसे बाद मैं दादीजी, छोटे अंकल, छोटी आंटी, अनु और प्रिंसी के साथ अपना बर्थडे मना रहा हूं. यह बर्थडे तो मुझे हमेषा याद रहेगा.” उज्जवल ने कहा.
दादीजी ने गाजर का हलवा खुद बनाया था. खीर भी बनी थी. उज्जवल को ढोकला बहुत पसंद था. इस लिए दादीजी ने उस के लिए ढोकला भी बना रखा था. कोल्ड ड्रिंक्स मंगवा लिए गए थे. आइसक्रीम भी थी. सचमुच मजा आ गया बर्थडे पार्टी का. छोटे अंकल पूरी पार्टी को शूट करते जा रहे थे.
पार्टी चल ही रही थी कि पोर्टिको में दो कारें आ कर लगीं. उज्जवल के पापा मम्मी, नितेष भैया और सोनिया दीदी भी आ पहुंचे थे. उधर हाजीपुर से वीरेन अंकल भी ज्योति दीदी, विक्की और गीता आंटी के साथ आ गए.
दादी ने जब अपने पूरे परिवार को एक साथ इकट्ठे देखा तो उन की खुषियों की सीमा न रही. बोली, “तुम सभी लोगों के आ जाने से पार्टी की रौनक तो और बढ़ गई है.”
पापा अपने सारे वाद्य यंत्रों को इतने कलात्मक ढंग से रखा हुआ देख कर तो बिल्कुल अभिभूत हो गए थे. वे अतीत के यादों की गहराइयों में गोते लगाते हुए नजर आ रहे थे. पापा अपने आप को चाह कर भी रोक नहीं सके. बरबस ही सिंथेसाइजर पर बैठ गए, कम्प्यूटर पर फर्राटे के साथ दौड़ने वाली उन की उंगलियां अब सिंथेसाइजर पर गजब का जादू चला रही थीं. उधर वीरेन अंकल ड्रम सेट पर और अनिल अंकल कांगो पर अपना जलवा बिखेर रहे थे. शुरु हो गया गानेबजाने का नहीं थमने वाला दौर. एक जमाने के बाद भी इन तीनों भाइयों ने एक से बढ़ कर एक गाने की धुन बजाई. उज्जवल को तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था.
वह जिद करने लगा, “पापा, मुझे भी गिटार सीखना है.” वापस लौटते समय उज्जवल गिटार अपने साथ लेते गया. पापा उसे गिटार बजाना सिखला रहे थे. उज्जवल के लिए सचमुच यह एक यादगार खुशनुमा शाम बन गई थी.

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