राहुल राज
पटना।
दहेज, यह एक एेसी सामाजिक कुप्रथा है जो सदियों से हमारे देश में चली आ रही है और वक्त बेवक्त इसका काला सच हमारे सामने आता रहता है। वैसे आज के समय में लोगों की मानसिकता थोड़ी बदली है, लोग बेटे-बेटी में भेद-भाव नहीं कर रहे हैं, लेकिन एेेसे लोगों का प्रतिशत आज भी कम है।
अब इस प्राचीन सामाजिक कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए शराबबंदी की ही तरह एक धीमी-सी आवाज निकली है। 3 अप्रैल 2017 को मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित संवाद कक्ष में आयोजित लोक संवाद कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने पहली बार आधी आबादी से बात कर उनकी समस्याएं सुनीं। महिलाओं ने मुख्यमंत्री को दहेज प्रथा, कॉमन रूम और महिला शिक्षा को लेकर अहम सुझाव दिए।
लोक संवाद में गुंजन पांडेय ने कहा कि पूर्ण शराबबंदी की तरह दहेजबंदी का भी कानून बनाया जाए। यह बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल के अंदर कहीं कोने में जाकर बैठ गई। उन्होंने हर साल दहेज के दानवों के भेंट चढी बेटियों के बारे में सोचा होगा और इसे ही अमल में लाने के लिए महिलाओं की दुख-पीड़ा को समझकर अब दहेजबंदी के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया है।
शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाज कल्याण विभाग के कामकाज की समीक्षा बैठक कर अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरुद्ध बड़े जागरूकता अभियान की योजना बनाएं।
अब देखना होगा कि जिस तरह नीतीश कुमार ने शराबबंदी की चुनौती को स्वीकार कर कई घरों को संवार दिया है, एेसे शराबबंदी कानून को पूरी तरह लागू करने वाली नीतीश सरकार अब बिहार में दहेजबंदी कानून को भी उसी तरह लागू कर एक नया इतिहास रचेगी और इस कुप्रथा से बिहार की बेटियों को छुटकारा दिलाएगी क्या? क्या अब बिहार की बेटियां दहेज के लिए अाग के हवाले नहीं की जाएंगी, क्या बेटियों के मां-बाप अब उनके जन्म के बाद जश्न मना सकेंगे।
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