ब्रजेश भारती- सिमरी बख्तियारपुर(सहरसा)
सहरसा-मानसी रेलखंड के धमाराघाट रेलवे स्टेशन से दक्षिण और सहरसा-खगड़िया जिले के सीमा पर अवस्थित माँ कात्यायनी स्थान देश के पर्यटन स्थलों में स्वार्णक्षर में शीघ्र ही अंकित हो जाने की उम्मीद दिख रही है.धमारा घाट स्टेशन के निकट रोहियार पंचायत अंतर्गत बंगलिया में ‘कोसी के गोद’ अवस्थित सुप्रसिद्ध मां कात्यायनी स्थान को पर्यटन के मानचित्र पर अंकित करने को लेकर सरकार द्वारा ‘कात्यायनी महोत्सव’ शुरु करने की स्वीकृति मिल गई है.इसके लिए तीन लाख रुपये का आवंटन भी जिला को प्राप्त हो गया है।महोत्सव की तैयारी के बीच अभी से लोगो में महोत्सव का चर्चा होने लगा है,कार्यक्रम जनवरी के मध्य होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
तैयारियो का दौर शुरू-
‘कात्यायनी महोत्सव’ के संबंध में कात्यायनी न्यास समिति के उपाध्यक्ष युवराज शंभू कहते हैं कि धार्मिक न्यास समित के अध्यक्ष द्वारा इस महोत्सव को सफलता पूर्वक मनाने का निर्देश दिया गया है.महोत्सव मनाने की तैयारी आरंभ कर दी गई है, जनवरी में इस महोत्सव को मनाया जायेगा, अभी तिथि का निर्धारण नहीं किया गया है.कात्यायनी न्यास समिति के सदस्यों की मानें तो पर्यटन स्थल घोषित किये जाने की दिशा में यह पहला सशक्त कदम है.न्यास समिति के उपाध्यक्ष बताते है कि मंदिर न्यास समिति और खगड़िया जिला के तमाम पदाधिकारी भी इसके लिए काफी प्रयासरत रहे और जिसका परिणाम यह है.कात्यायनी न्यास समिति के सदस्यों का कहना है कि सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कात्यायनी स्थान को पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने को लेकर भी हम सभी प्रयासरत हैं.
सीएम से उद्घाटन कराने का प्रयास-
कात्यायनी मंदिर न्यास समिति के उपाध्यक्ष युवराज शंभु बताते है कि महोत्सव को जनवरी में मकर संक्रांति पर्व के निकट मनाने का विचार चल रहा है, साथ ही महोत्सव का उद्घाटन चीफ मिनिस्टर नितीश कुमार से करवाने की कोशिश की जा रही है.उन्होंने कहा कि दो दिवसीय महोत्सव के दौरान मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जायेगा और कार्यक्रम सहरसा और खगड़िया जिले के लोगो से गुलजार होगा.उन्होंने कहा कि इस शक्तिपीठ को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग की जा रही है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे हमारी इस बहुप्रतिक्षित मांग को पूरा कर दिया जाएगा, क्योंकि कात्यायनी महोत्सव मनाये जाने के बाद इस ओर सभी का ध्यान आकृष्ट होगा.बहरहाल, कात्यायनी महोत्सव मनाने की तैयारी को लेकर ना सिर्फ कात्यायनी न्यास समिति अपितु क्षेत्र वासियों में भी काफी उत्साह देखा जा रहा है.
मन्दिर का क्या है इतिहास –
दिल्ली के महरौली से आये सेंगर वंश के राजा मंगल सिंह को मुगल बादशाह अकबर ने 1595 मे चौथम तहसील देकर मुरार शाही की उपाधि से नवाजा था.राजा व उनके मित्र श्रीपत जी महाराज को यह पवित्र स्थल शिकार व गौ चराने के क्रम मे मिला.किंवदंती है कि श्रीपत जी महाराज हजारो गाय-भैंसों के मालिक थे.चरने के क्रम मे उक्त स्थल पर गाय स्वत: दूध देने लगती थी.जिसे देखकर दोनों को आश्चर्य होता था.लोगो का कहना है कि राजा को माँ ने स्वप्न मे दर्शन देकर वहां मन्दिर बनाने का आदेश दिया था.इसी पर दोनों ने उक्त स्थान पर मन्दिर का निर्माण करवाया.खुदाई के क्रम मे उस स्थान से माँ का हाथ मिला.जिसका पूजन आज भी किया जा रहा है.माँ कात्यायनी के पूजा के बाद यहाँ आज श्रीपत जी महाराज की भी पूजा की जाती है.इस इलाको के लोकगीतों मे भी राजा मंगल सिंह और श्रीपत जी की चर्चा होती है.मन्दिर से जुड़े लोग बताते है कि लोगो को शारीरिक कष्ट एवं पशुओ (गाय, भैंस, बकरी) के रोगों के निवारण के लिए श्रद्धालु माँ कात्यायनी से याचना करते है और मनोकामना पूर्ण होने पर माँ को दूध का चढावा चढाते है.रास्ते मे घंटो समय लगने के बावजूद चढावा का दूध जमता या फटता नही है.माँ कात्यायनी धार्मिक न्यास समिति के उपाध्यक्ष युवराज शंभु बताते है कि अन्य शक्तिपीठो की तरह इस शक्तिपीठ का भी काफी महत्ता है और इस आयोजन के बाद पर्यटन के मानचित्र पर आने की संभावना बढ़ जायेगी।
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