जमशेदपुर -आत्महत्या की खबरें पद्ग-पढ़ कर मन काफ़ी उद्वेलित हो जाता है – काले
# नमन करेगी आत्महत्या निवारण पर पहल ।
जमशेदपुर।
नमन के माध्यम से आनेवाले दिनों में आत्महत्या निवारण के क्षेत्र में कुछ काम करने की इच्छा है। इस दिशा में हमारी पहली कोशिश होगी कि अपने साथियों के बीच जागरूकता का प्रसार और इसके बाद एक टीम बनाकर लोगों को जागरूक कराना।
बढ़ती सुसाइडल टैंडेंसी के यूं तो कई कारण है पर मेरी निगाह में सबसे बड़ा कारण है लोगों का स्वार्थी होना, आत्महत्या करने वाला व्यक्ति ये नही सोचता कि उसके जाने के बाद उसके परिवार और दोस्तों पर क्या गुजरेगी, उसे तो सिर्फ अपनी परवाह होती है कि एक ठोकर लगी और टूट कर बिखर गए, बेहतर तो ये होता कि जिस पत्थर से ठोकर लगी थी उसे हटाकर किनारे रखते ताकि किसी और को वो ठोकर ना लगे।
कोरोना टेस्ट से डरकर कई लोगों ने आत्महत्या कर ली तो किसी ने नौकरी जाने की आशंका से, जो लोग मुसीबत में हैं उनसे ज्यादा उनलोगों ने आत्महत्या कर ली जिन्हें मुसीबत की आशंका थी। 25 सालों के राजनैतिक जीवन मे हर तरह का उतार चढ़ाव भी देखने को मिला और रोज ऐसे लोगों से मिलना होता है जो ज़िन्दगी की लड़ाई बहादुरी से लड़ रहे हैं। पर अक्सर अपने आप से टकराना पड़ता है जब सुनता हूँ कि फलां ने बिना लड़े जिंदगी की जंग हार ली ।
कारण असंख्य हैं पर मैँ बात करुंग निवारण कीआत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति की जब हम बात करते हैं तो पहला प्रश्न तो ये उठता है कि आखिर आत्महत्या है क्या?आत्महत्या का शाब्दिक अर्थ है अपनी हत्या, मेरे विचार से आत्महत्या करने वाला उससे भी बड़ा अपराधी है जो दूसरों की हत्या करता है। महापुरुषों की वाणी को सुने या धर्मग्रन्थों को पढ़े, सब जगह आत्महत्या को पाप कहा गया है।अब सोचें कि आखिर इस आत्महत्या की खुराक क्या है— इसकी खुराक है, निराशा, कुंठा, आत्मविश्वास की कमी, अकेलापन,और इससे बचने का उपाय है, अच्छी संगति, अच्छी पुस्तकें, जीवन का कोई बड़ा उद्देश्य, सकारात्मक सोच आदिआज जब पूरी दुनिया कोविड से त्रस्त है तो आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ गयी है, कारणों पर जाएं तो कितना बताएं हमे तो समाधान की ओर जाना है।अगर हमारे आसपास कोई इंसान अचानक एक दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है तो कहीं न कहीं हम भी उसके गुनहगार हैं, क्योंकि ना तो हम उसकी भावनाओं को समझ पाए ना वो हमसे अपने मन की बात कह पाया।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो जब किसी व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व है तो समाज का भी उस व्यक्ति के प्रति इतना ही दायित्व हैअंत मे सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कियाद रखें आप अपने जीवन के सिर्फ कस्टोडियन हैं मालिक नही, ये जीवन जिस ईश्वर ने दिया है इसे लेने का भी अधिकार उसी को है।अफसोस तब होता है कि आज जब देखता हूँ कि कम उम्र के बच्चे, सम्पन्न परिवारों के बच्चे भी आत्महत्या कर लेते हैं। यानी हमारी शिक्षा में दोष है, मां बाप खुद में व्यस्त है , एक बच्चा पर वो भी अकेलेपन का शिकार। आप देखेंगे तो गांव में बस्ती के इलाकों में आत्महत्या की घटनाएं कम हैं। घरेलू कलह संगति, गैरजरूरी दिखावा, अहंकार, मान अपमान का बोध ये सब कारण हैं आत्महत्या केहमे अपने महापुरुषों का इतिहास पढ़ना चाहिये, सब पर विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करके ही इतिहास में अपना नाम कमाया है।
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