JAMSHEDPUR NEWS :ललित नारायण मिश्र सांस्कृतिक एवं सामाजिक कल्याण समिति करेगा कर्मकांड पर परिचर्चा
ललित नारायण मिश्र सांस्कृतिक एवं सामाजिक कल्याण समिति द्वारा कर्मकांड पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन एवं सामूहिक उपनयन संस्कार के संबंध में

ललित नारायण मिश्र सांस्कृतिक एवं सामाजिक कल्याण समिति आगामी 5 जून को शहर के मध्य वीमेंस
कॉलेज सभागार में प्रातः 9 बजे से कर्मकांड पर परिचर्चा का आयोजन कर रही है। परिचर्चा का विषय है –
वर्तमान समय मे कर्मकांड की महत्ता, उपयोगिता,आवश्यकता एवम समाज की अपेक्षाएं।
जमशेदपुर।
सनातन धार्मिक परंपरा में कर्मकांड का विशिष्ट स्थान है ।
सनातन धर्म का मूल आधार वेद और उसकी विविध शाखाएं, उपशाखाएं आदि कर्मकांड के विविध पहलू को
निर्धारित करती है। समय और परिस्थितियों के अनुरूप कर्मकांड के विविध रूपों में परिवर्तन की आवश्यकता एवं
संपूर्ण देश के सनातन समाज के मध्य कर्मकांड एवं संस्कारो की विधि विधान की समानता की संभावना तलाशने की
दृष्टि से ललित नारायण मिश्र सांस्कृतिक एवं सामाजिक कल्याण समिति ने कर्मकांड पर विशेष परिचर्चा की श्रृंखला
में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है।
प्रथम चरण में मिथिला के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। उद्देश्य स्पष्ट है कि सर्वप्रथम मिथिला
के विद्वानों में 16 संस्कारों के संबंध में स्थिति स्पष्ट की जाए। विस्तृत परिचर्चा प्रारंभ हो और कर्मकांड के संबंध में
आम जनों को सही जानकारी प्राप्त हो सके। कहा भी गया है कि “जन्मना जायते शूद्र संस्कारेन द्विज उच्यते”। अब
कितने संस्कार प्रचलन में हैं, कितने संस्कारों के स्वरुप में परिवर्तन हुआ है, कितने कर्मकांड की आज आवश्यकता
है, कर्मकांड के मूल स्वरुप में किस प्रकार के बदलाव हुए हैं? वह कौन सी परिस्थितियां हैं जिसमें दक्षिण से
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लेकर उत्तर,पूर्व से लेकर पश्चिम तक कर्मकांडो के स्वरुप में अन्तर देखा जाता है? अगर धर्म एक है,आधार एक है तो
स्वरुप एक ही होना चाहिए। समय अनुकूल कर्मकांड यथा जन्म, विवाह एवं मृत्यु संस्कार के अतिरिक्त जो संस्कार
प्रचलन में हैं उनका वास्तविक स्वरुप, वर्तमान स्वरुप, वर्तमान परिस्थिति में आवश्यकता आदि पर विमर्श आवश्यक
है और यह आवश्यक संस्कार हैं जो किसी न किसी रूप में शौकीन वर्गों में प्रचलित है । कर्मकांड सनातन धर्म का
मूल भाग है जो आत्मा को परमात्मा तथा जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की महत्ता को स्पष्ट करती है। संस्था
का मानना है कि मिथिला के विद्वानों ने वेद – वेदांग, दर्शन , स्मृतियों के प्रणयन- पल्लवन एवं समीक्षा क्षेत्र में
सर्वाधिक योगदान दिया है। यह भी एक तथ्य है कि आदि शंकराचार्य जी को सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए
मिथिला के विद्वानों की आवश्यकता पड़ी थी। शंकर मंडन भारती के शास्त्रार्थ की चर्चा तो प्रायः होती रही है। ऐसी
परिस्थिति में मिथिला के विद्वानों का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है कि वह आदिकाल से विमर्श की चल रही

परंपरा को फिर से प्रारंभ कर हिंदू समाज को नई दिशा देने का प्रयास करें। मिथिला के विद्वतजन एकमत हो जाते हैं
और उन्हें लगता है कि कर्मकांड के मूलस्वरुप जन्म, विवाह और मृत्यु से संबंधित विधानों में समय को देखते हुए
सहजीकरण की संभावनाएं है तो फिर राष्ट्रीय स्तर पर अन्य सभी जो विद्वता के केंद्र हैं; बनारस, दक्षिण भारत, नेपाल
आदि के विद्वानों के बीच विमर्श किया जाए कि समाज के माध्यम से प्रचलित सभी प्रकार के संस्कारों के विधानों की
आवश्यकता और परिवर्तन की संभावनाएं पर विमर्श हो और सनातन धर्म का जो महत्वपूर्ण भाग है, आवश्यक भाग
है कर्मकांड जो हमें आत्मा और परमात्मा के बीच सेतु का काम करने के लिए प्रेरित करता है, जो हमें अपने पितरों से
जोड़ता है, जो हमें इस जन्म धर्म के अनुकूल मानवता वादी दृष्टिकोण के अनुकूल व्यवहार करने के लिए शिक्षित
करता है को व्यवहारिक स्वरुप प्रदान किया जा सके।
इस अवसर पर सोमनाथ संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति डॉक्टर अर्कनाथ चौधरी , कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ० विद्याधर मिश्र,केंद्रीय संस्कृत संस्थान लगमा के डॉक्टर सदानंद झा, डॉ बौआनन्द
झा ,संस्कृत विद्यापीठ महिषी से नंदकिशोर मिश्रा, कर्मकांड के विशेषज्ञ डॉक्टर ध्रुव कुमार, पटना से रामनाथ झा के
अतिरिक्त बनारस के प्रतिनिधि भी सम्मलित होंगे। इसकी अतिरिक्त झारखंड के सभी मैथिली भाषी संस्थाओं को
इस एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया गया है। ताकि उनके माध्यम से संगठन
द्वारा विमर्श किस वर्षों को समाज तक पहुंचाया सके।
कार्यक्रम में उद्घाटनकर्ता के रूप में कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० गंगाधर पांडा को आमंत्रित किया गया
है। साथ ही संस्था अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहण का प्रयास करते हुए सामूहिक यग्योपवीत संस्कार का
आयोजन अपने मिथिला भवन, गोविंदपुर में कर रही है। 2 जून से प्रारम्भ होकर 12 जून तक चलने वाले इस 11
दिवसीय आयोजन में मुख्य कार्यक्रम दिनांक 9 जून को यग्योपवीत संस्कार के रूप में आयोजित किया गया है।
कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए तैयारियां अब अपने अंतिम चरण में है। अनुमानतः 25-30 बटुकों का
उपनयन संस्कार होना है। पंजीकरण के लिए अगले 2 दिनों में संस्था से सम्पर्क किया जा सकता है।
इस प्रेस वार्ता की अध्यक्षता डॉ० ऐ०के०लाल ने की। स्व०ललित बाबू के पौत्र श्री ऋषि मिश्रा(पूर्व विधायक, बिहार
विधान सभा) को संस्था द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में नवकान्त झा, शिशिर झा, सुजीत
झा, शंकर पाठक, अशोक झा पंकज, विक्रम आदित्य सिंह, शिव चन्द्र झा, निवास झा, जयप्रकाश झा, राजीव ठाकुर,
गोपाल जी ठाकुर, चन्दन झा, शंकर झा आदि का योगदान रहा।