जमशेदपुर।
झारखंड में मैथिली भाषा को नियोजन नीति में शामिल करने की वर्षों पुरानी मांग को लेकर कोल्हान मिथिला समाज के नेतृत्व में विभिन्न मैथिल संस्थाओं के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन से रांची स्थित उनके कार्यालय में मुलाकात की। प्रतिनिधियों ने उन्हें एक गंभीर और विस्तारपूर्ण ज्ञापन सौंपा, जिसमें राज्य में मैथिली भाषा के सामाजिक, सांस्कृतिक और जनसंख्यात्मक महत्व को रेखांकित किया गया।


प्रतिनिधिमंडल ने यह स्पष्ट किया कि मैथिली झारखंड की द्वितीय राजकीय भाषा है तथा भारत सरकार की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल एक मान्यता प्राप्त भाषा है। मैथिली की अपनी स्वतंत्र लिपि ‘तिरहुत’ है और राज्य में लगभग 30 लाख मैथिली भाषी नागरिक निवास करते हैं। प्रतिनिधियों ने बताया कि संथाल परगना, देवघर, धनबाद, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम, रांची समेत कई जिलों में यह भाषा व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है, इसके बावजूद यह राज्य की नियोजन नीति में स्थान प्राप्त नहीं कर पाई है, जो समाज के लिए अपमानजनक और अस्वीकार्य है।
शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से सुना और सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि वे इस विषय को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाएंगे और इसे विधानसभा में रखने का प्रयास करेंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार झारखंड की भाषाई विविधता और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस मौके पर प्रतिनिधिमंडल में पंडित विपिन झा, शिव चंद्र झा, पंकज रॉय, अनिल झा (आदित्यपुर), अमर झा, मिथिलेश झा, संजीव झा, नवीन झा, मुन्ना पांडे, संतोष पांडे, विशेश्वर पांडे समेत कई वरिष्ठ समाजसेवी और भाषा प्रेमी शामिल थे।
यह पहल मैथिली भाषा को सम्मान और अधिकार दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है, और समाज में इसे लेकर सकारात्मक उम्मीदें जगी हैं।