जमशेदपुर/रांची
झारखंड राज्य में मैथिली भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा तो प्राप्त है, लेकिन अब तक इसे राज्य की नियोजन नीति में उचित स्थान नहीं मिला है। इसी अहम मुद्दे को लेकर आज मैथिली भाषा संघर्ष समिति, झारखंड के बैनर तले जमशेदपुर व रांची की प्रमुख मैथिली संस्थाओं का एक प्रतिनिधिमंडल ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडेय सिंह से मिला और उन्हें एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा।


20 लाख मैथिली भाषियों के सम्मान की मांग
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे समिति के संयोजक अमरनाथ झा ने मंत्री महोदया को बताया कि झारखंड में 20 लाख से अधिक मैथिली भाषी नागरिक निवास करते हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि संयुक्त बिहार काल में हुए भाषा सर्वेक्षण के अनुसार संथाल परगना प्रमंडल एक पूर्ण रूप से मैथिली भाषी क्षेत्र रहा है।
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संविधान में स्थान, फिर भी उपेक्षा
प्रतिनिधिमंडल ने यह रेखांकित किया कि मैथिली भाषा न केवल संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित है, बल्कि इसकी स्वतंत्र लिपि ‘तिरहुता’ भी है। इतने समृद्ध साहित्य और ऐतिहासिक पहचान के बावजूद, झारखंड की नियोजन नीति में मैथिली को स्थान नहीं मिलना, मैथिली भाषियों के लिए गंभीर क्षोभ और असमानता का विषय बन गया है।
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मंत्री और मुख्यमंत्री का आश्वासन
मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से सुना और कहा कि वह इस विषय को सरकार के समक्ष मजबूती से रखेंगी। प्रतिनिधिमंडल के विशेष आग्रह पर उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी भेंट करवाई, जिन्होंने भी मांग पर सकारात्मक पहल का भरोसा दिलाया।
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प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रमुख व्यक्ति:
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अनूप मिश्रा (ज्योति) – अध्यक्ष, विद्यापति परिषद, जमशेदपुर
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पंकज कुमार झा – प्रदेश सचिव, अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद
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मोहन ठाकुर – अध्यक्ष, मिथिला सांस्कृतिक परिषद
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धर्मेश झा (लड्डू) – महासचिव
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हंसराज जैन – अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद, सरायकेला
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राजीव रंजन झा – महासचिव
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राजकुमार मिश्र – प्रतिनिधि, झारखंड मैथिली मंच, रांची