बुद्ध के देश में,पार्ट -4 किसने खिलाई थी भगवान बुद्ध को खीर,बोधगया में ज्ञान प्राप्त होने से पहले कहां ध्यानमग्न हुए थे बुद्ध, पढ़िए

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अन्नी अमृता.

बोधगया/जमशेदपुर

बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थल बोधगया में हर साल करोड़ों पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं.उनमें से कई बोधगया घूमकर चले जाते हैं,लेकिन उनमें से कई ऐसे होते हैं जो बोधगया से सटे बकरौर और ढुंकेश्वरी पहाड़ भी जाते हैं.उसके पीछे कहानी क्या है, यह आपको बताते हैं.

जब हमलोग बोधगया में दक्षिण-पूर्व के देशों के विभिन्न बौद्ध मठों का भ्रमण कर रहे थे, तब मेरे दिमाग में लगातार ‘सुजाता स्तूप’ घूम रहा था जिसके बारे में काफी पढा था,मगर महाबोधि मंदिर में काफी समय बिताने के बाद बहुत कम बचे समय में हमलोग विभिन्न देशों के बौद्ध मठ घूम रहे थे,ऐसे में समय भी कम था क्योंकि शाम होने को थी और थकान भी हो रही थी.फिर भी हमने हिम्मत जुटाकर तय किया कि सुजाता स्तूप देखे बिना बोधगया से नहीं जाएंगे.

सुजाता स्तूप बोधगया से सटे बकरौर गांव में है जहां जाने के लिए ई-रिक्शा को अलग से भुगतान करना पड़ता है.थोड़ा तोल-मोल करके हम उसी ई-रिक्शा से बकरौर गांव की ओर निकल पड़े.गांव का सादा जीवन अपने ‘रुटीन’ कार्यों में व्यस्त था.खुले मैदान में खेलते बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था.यहां बड़े पैमाने पर साग-सब्जियों की खेती नजर आ रही थी तो काफी संख्या में बने रिसाॅर्ट भी दिख रहे थे.हम बढते जा रहे थे.बहुत शांति महसूस हो रहा था.खेती के दृश्य आंखों को सुकून ही देते हैं.कुछ ही देर में हम ‘सुजाता स्तूप’ पहुंचे.सुजाता स्तूप के रखरखाव में लगे कुछ कर्मचारियों को छोड़कर वहां कोई पर्यटक नहीं मिला.आकर्षक साड़ियां पहनें गांव की स्थानीय दो महिलाएं टहलते हुए मिलीं.उन्होंने बताया कि वे यहां रोजाना टहलती हैं.स्तूप की चहारदीवारी पर बाहर की तरफ बैठी कुछ बच्चियां खेलते हुए मिलीं जिन्होंने हंसते हुए बताया कि वे पढती हैं और शाम को यहां खेलने आती हैं.एक छोटी बच्ची ने जोर देकर बताया कि वह ‘नर्सरी’ में पढ़ती है.

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कहा जाता है कि ‘सुजाता’ की याद में 9वीं शताब्दी में देवपाल ने ‘सुजाता स्तूप’ का निर्माण किया था.2005में पुरातत्व विभाग को खुदाई में यह मिला था.सवाल उठता है कि आखिर ‘सुजाता’ कौन थी?

भगवान बुद्ध को ‘सुजाता’ने खिलाई थी खीर
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ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान बुद्ध ने पहले गया के ढुंगेस्वरी पहाड़ पर स्थित गुफा में 6सालों तक साधना की थी.कठोर तय करते करते उनका शरीर कंकाल जैसा बन गया था.उसके बाद वे वहां से 12किमी पैदल चलकर बकरौर गांव पहुंचे और पेड़ के नीचे साधना करने लगे.गांव की एक महिला ‘सुजाता’ ने भगवान बुद्ध को खीर खिलाई जिसको खाकर बुद्ध को मध्यम मार्ग का बोध हुआ.वहां से वे बोधगया गए जहां पीपल के पेड़ के नीचे उन्होंने ध्यान किया और बुद्ध पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ.इस प्रकार वे राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए.सुजाता ने जहां भगवान बुद्ध को खीर खिलाई थी,वहां सुजाता मंदिर है जिसके कोने-कोने को हमने देखा.वहां खीर का कटोरा लिए सुजाता की मूर्ति बनी हुई है.पास में भगवान बुद्ध की मूर्ति है.खीर खिलाने के उस पल को जीवंत करने की कोशिश की गई है.इसे देखने के लिए विदेशी बौद्ध धर्मावलंबी बहुतायत में आते हैं.स्थानीय ग्रामीणों को इस मंदिर से रोजगार भी मिला हुआ है.मंदिर के आस पास हंसते खेलते बच्चे यहां की यात्रा को आनंददायक बना देते हैं.

सुजाता स्तूप और सुजाता मंदिर के भ्रमण के बाद प्रफुल्लित मन से हम वापस बोधगया के लिए चल पड़े.अगले दिन सुबह मेरी गया से ट्रेन थी….

बोधगया की धरती सचमुच पावन है.एक अद्भुत शांति का अनुभव लिए अगले दिन मैं वापस झारखंड के लिए निकल गई और मेरी दोस्त अपने गंतव्य ‘दिल्ली’ के लिए निकल गई.कह सकते हैं कि भगवान बुद्ध का बुलावा था….

समाप्त….

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