Jamshedpur News:जमशेदपुर में अवैध निर्माणों पर कार्रवाई का मामला–हाई कोर्ट की फटकार, कहा–अगली तारीख में जे एन सी के उप नगर आयुक्त सशरीर हाजिर हों

रांची/जमशेदपुर

 

जमशेद‌पुर में अवैध निर्माण, नक्शा विचलन, बेसमेंट में पार्किंग की जगह व्यवसायिक गतिविधियों के मामले में हाई कोर्ट ने अब कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है. हाई कोर्ट ने अगली तारीख में जेएनसी(अक्षेस) के उप नगर आयुक्त को सशरीर कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया है.

आज दिनांक 30/04/2024 को झारखंड उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय और माननीय न्यायाधीश दीपक रौशन की पीठ में जनहित याचिका 2078 /2018 की सुनवाई हुई.सुनवाई शुरू होते ही माननीय उच्च न्यायालय ने न्यायालय द्वारा गठित टीम की रिपोर्ट के आधार पर अ० क्षे० स० के अधिवक्ता से पूछा कि जमशेदपुर में कानून का शासन है अथवा नहीं? इतने बड़े पैमाने में भवन निर्माण में अनियमितता व अवैध निर्माण पर केवल लीपा पोती क्यों की जा रही है? माननीय न्यायाधीश ने भरी अदालत में जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के अधिवक्ता से पूछा कि अब तक कुल कितने अवैध निर्माणों पर आपने कार्रवाई की है और क्या कार्रवाई की है? इस पर अ० क्षे० सo के अधिवक्ता ने कहा कि कुल 62 भवनों पर नियमानुसार कारवाई की गई है. इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि एक भी भवन में न तो पार्किंग को बहाल किया गया है न ही नक्शा विचलन कर बने तल को हटाया गया है. इस पर माननीय न्यायाधीश ने अपने अंदाज में प्रतिवादी के अधिवक्ता से पूछा कि आपने जिन भवनों में कारवाईयां की हैं उसकी कोई तस्वीर है तो दिखाईये. प्रतिवादी के अधिवक्ता तस्वीर दिखाने में असफल हुए, तब माननीय अदालत ने वादी पक्ष के अधिवक्ता से अपनी बात रखने को कहा.

माननीय अदालत ने पूछा कि अक्षेस का अधिकार क्या है और इसे ये अधिकार मिलता कहाँ से है? इस पर एक अधिवक्ता ने माननीय न्यायालय का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि अक्षेस एक गैरकानूनी संस्था है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने माननीय अदालत को बताया कि अक्षेस का गठन अंग्रेजों ने बिहार-उड़ीसा म्युनिसिपल एक्ट, 1922 के तहत 1924 में किया, पर यह 1998 तक एक प्राईवेट बाॅडी रही, क्योंकि यह पूरी तरह टाटा स्टील के नियंत्रण में रही बावजूद इसके कि 1990 में अक्षेस को बिहार-उड़ीसा म्युनिसिपल एक्ट से हटाकर इंडस्ट्रियल टाउन की परिभाषा को शामिल किया गया. उन्होंने आगे बताया कि 1998 में सरकार ने एक सर्कुलर के माध्यम से उपायुक्त को यह निर्देश दिया कि वे अपने मातहत किसी कनीय अधिकारी को नियुक्त कर अक्षेस को चलाये. यह एक असंवैधानिक और गैरकानूनी व्यवस्था थी. 2006 में सरकार ने फिर एक नोटिफिकेशन के द्वारा अक्षेस के लिए एक स्पेशल अधिकारी का पद सृजित किया जो म्युनिसिपल कानून के खिलाफ था. उन्होंने आगे बताया कि इन 16-17 वर्षों में दो ही स्पेशल अधिकारी मुख्य रूप से रहे हैं, एक दीपक सहाय और दूसरे कृष्णकुमार और सबसे ज्यादा नक़्शा पारित और भवन निर्माणों में विचलन इन्हीं दोनों अधिकारियों के समय का है. उन्होंने आगे बताया कि 2011 में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर 46 भवन सील किए गये थे. उस वक्त यदि कड़ाई से कानून का पालन होता तो आज अवैध भवनों की संख्या 1257 नहीं होती. उन्होंने आगे बताया कि उन्हीं 46 भवनों को अक्षेस फिर 2024 में सिलिंग दिखा रही है. यह सुनते ही माननीय न्यायाधीश रंगोन मुखोपाघ्याय ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछा कि क्या यह बात सही है? इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अपने हलफनामे में संलग्न सूचियों को एक बार देखने का आग्रह किया जिन्हें सूचना अधिकार के तहत प्राप्त किया गया था और जिसे पहले से ही हलफनामें में लगा रखा था.
माननीय न्यायाधीश द्वय पूरी सूचियों को देखकर दंग रह गये और तुरंत जमशेदपुर अघिसूचित क्षेत्र समिति के उप नगर आयुक्त को अगली सुनवाई में सशरीर उपस्थित होने का आदेश देते हुए अघिसूचित क्षेत्र समिति को हिदायत दी कि अदालत को गुमराह करने की कोशिश न करे.

माननीय अदालत ने कहा कि
क़ानून का घोर उल्लंघन हुआ है और बड़े पैमाने पर हुए अनियमितता को कोर्ट ज़रूर नियंत्रित करेगी और ज़िम्मेदारी तय करते हुए अधिकारियों पर कार्रवाई करने से भी नही हिचकेगी.

जमशेदपुर जैसे छोटे शहर में 1257भवनों में अनियमितता से साफ़ है कि कानून निष्क्रिय हो चुका है और यहाँ एक नेक्सस काम कर रहा है.माननीय उच्च न्यायालय शहर के सभी अवैध निर्माणों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने से पहले स्पेशल अधिकारी को सुनना चाहेगी कि किस नियम के तहत नक़्शा पारित होता है और अवैध निर्माणों को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया गया?

अक्षेस के अधिवक्ता द्वारा कार्रवाई होने का दावा दुहराने पर पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने माननीय अदालत को फिर से याद दिलाया कि अक्षेस के अधिवक्ता गुमराह कर रहे हैं. अक्षेस ने जिन 46 भवनों को अदालत के आदेश पर 2011 में सील किया था उन्हें बग़ैर अदालत को सूचित किये खोल दिया गया जिसको नगर विकास विभाग झारखंड सरकार के प्रधान सचिव ने भी माना और अपनी जाँच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि अधिसूचित क्षेत्र समिति के द्वारा बग़ैर उचित मापदंड के सील खोला जाना ग़लत कदम था, इससे कानून का डर समाप्त हुआ है.

प्रधान सचिव कार्यालय ने अपने आदेश में कहा था कि उपायुक्त स्तर के अधिकारी को ऐसे अवैध निर्माण पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए हर माह बैठक कर टास्क फ़ोर्स बनाना चाहिए. अदालत द्वारा गठित कमीशन ने भी पिटीशन में उठाये गये मसलों को सही करार दिया.

याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, रोहित सिंहा और एम आई हसन ने सुनवाई में हिस्सा लिया.

माननीय अदालत ने अंत में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से कहा कि वे 20 ऐसे भवनों की सूची अदालत को दें जिसमें सबसे ज्यादा विचलन हुआ है जिसे अधिवक्ता द्वारा एक फेहरिस्त बनाकर दायर कर दिया गया.

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