सरायकेला। पूर्वी भारत का आस्था और श्रद्धा से जुड़ा सबसे बड़ा पर्व छठ महापर्व सरायकेला जिले में पूरे विधि-विधान और उत्साह के साथ संपन्न हुआ। जिले के प्रमुख छठ घाटों — आदित्यपुर काली मंदिर घाट और कुलुपटांगा छठ घाट — पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लाखों की संख्या में छठव्रतियों और श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और बच्चों की उज्जवल भविष्य की कामना की।
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य जैसे अनुष्ठानों से जुड़ा होता है। इस दौरान व्रती 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखकर भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा-अर्चना करते हैं। व्रतियों की भक्ति और अनुशासन इस पर्व की विशेष पहचान है।
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कुलुपटांगा और आदित्यपुर घाट पर प्रशासनिक स्तर पर भी विशेष तैयारी की गई थी। घाटों की सफाई, सुरक्षा व्यवस्था, रोशनी और मेडिकल टीम की तैनाती सुनिश्चित की गई थी ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। स्थानीय सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवकों ने भी श्रद्धालुओं की सेवा में सक्रिय भूमिका निभाई।
पूरे क्षेत्र में छठ गीतों की गूंज से वातावरण भक्तिमय बना रहा — “उठो सूर्य देव भइल भिनसार, छठ मइया के होइ दरबार” जैसे लोकगीतों से घाटों की रौनक देखते ही बनती थी। महिलाओं ने पारंपरिक वस्त्रों में सजकर पूजा की, वहीं पुरुषों ने घाट की व्यवस्थाओं में सहयोग दिया।
छठ पर्व को लेकर बाजारों में भी पहले से खास रौनक देखने को मिली। फल, सूप, दौरा, और प्रसाद सामग्री की दुकानों पर भीड़ रही। लोगों ने अपने घरों और आस-पड़ोस के घाटों को दीयों और फूलों से सजाया।
श्रद्धा, अनुशासन और पर्यावरण के संदेश से जुड़ा यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी बन गया है। सरायकेला में छठ महापर्व के शांतिपूर्ण समापन के साथ श्रद्धालुओं ने अगले वर्ष फिर इसी आस्था के साथ लौटने का संकल्प लिया।
