
राजेस तिवारी
पटना। एक असाधारण से शिक्षक चाणक्य ने भारत के विशाल साम्राज्य का सपना देखा और एक साधारण बालक चंद्रगुप्त को इस विशाल साम्राज्य का प्रणेता बना दिया।
शिक्षक चाणक्य, जो राजनीति से दूर अपना जीवन शांति से व्यतीत करता था, जो भारत को एक विशाल साम्राज्य के रूप में देेखना चाहता था। उसकी नजरों को हमेशा से तलाश थी एक ऐसे युवा कि जो भारत का नया इतिहास लिख सके। एक ऐसे आम शिष्य की जो खास बनने का माद्दा रखता हो।
एक बार चाणक्य पाटलिपुत्र के राजा महापद्मनंद के यहाँ किसी यज्ञ में गए और भोजन के समय एक प्रधान आसन पर जा बैठे। राजा ने चाणक्य का काला रंग देखकर इन्हें आसन से उठ जाने की आज्ञा दी। चाणक्य बिना भोजन किए वहां से क्रुद्ध होकर निकले और उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि जबतक मैं इस नंदवंश का नाश न कर लूँ तबतक अपनी शिखा नहीं बाँधूँगा।
ऐसी प्रतिज्ञा कर जब वह राजमहल से निकलेे तो उनकी नजर रास्ते में खेलते हुए बालक चंद्रगुप्त पर पड़ी जो खेल रहे समव्यस्क बच्चों का नेतृत्व कर रहा था। चाणक्य को पहली ही नजर में भारत का भावी सम्राट मिल गया था। वे उसे अपने साथ ले आए और शिक्षा देनी शुरू कर दी।
चाणक्य जैसा शिक्षक और चंद्रगुप्त जैसा छात्र। चाणक्य ने जैसी कल्पना की थी चंद्रगुप्त उस कल्पना पर शत-प्रतिशत खरा उतरता गया और कुम्हार के सधे हाथों से चाक पर चढ़ी मिïट्टी ने अपना आकार लिया और युवा चंद्रगुप्त ने छोटे-छोटे राजाओं की सहायता से पाटलिपुत्र पर चढ़ाई की और नंदों को युद्ध में परास्त करके मार डाला।
नंदवंश के विनाश के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य मगध की गद्दी पर आसीन हुआ। उसे पराक्रमी बनाने और मौर्य साम्राच्य का विस्तार करने के उद्देश्य से गुरु चाणक्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश किया और उसका मंत्री बना। अब चाणक्य का अगला लक्ष्य भारत को एक विशाल साम्राज्य के रूप में स्थापित करना था।
नंद वंश के बाद पूरे भारत पर कब्जा कर चन्द्रगुप्त सत्ता के केन्द्र पर काबिज़ हो गया और उसकी विजयी सेना ने विश्व विजेता बनने निकले सिकंदर महान के सेनापति सेल्यूकस को हराकर यहां से भगा दिया और उसके विश्व विजयी बनने के सपने को तोड़ डाला।
उसने मौर्य वंश की स्थापना की और भारत का विशाल साम्राज्य स्थापित किया। इस तरह उसने अपने शिक्षक चाणक्य के सपने को पूरा कर इतिहास बनाया।
