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Home » मधेपुरा-जिउतिया पर्व धुमधाम से मनाया गया
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मधेपुरा-जिउतिया पर्व धुमधाम से मनाया गया

BJNN DeskBy BJNN DeskSeptember 23, 2016No Comments3 Mins Read
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SANJAY KUMAR SUMAN

संजय कुमार सुमन

मधेपुरा।
संतान की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व आज शुक्रवार को बड़े ही हर्षौल्लास के साथ मनाया गया । माताएं आज निर्जला व्रत रखेंगी। अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक जिउतिया पर्व मनाया जाने वाला तीन दिवसीय व्रत में पहले दिन यानी गुरुवार को नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत हुई। शुक्रवार को माताएं खर जितिया यानी निर्जला व्रत किया । तीसरे दिन शनिवार को सुबह पारण के साथ यह पर्व संपन्न होगा। कई जगहों पर मान्यता है कि पुत्र के लिए जिउतिया पर्व उठाया जाता है कि लेकिन अधिकतर जगहों पर पुत्र-पुत्रियों दोनों के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
ऐसी कई महिलाएं हैं, जिनके बेटे नहीं हैं, लेकिन वे अपनी बेटियों के लिए जिउतिया का व्रत कर रही हैं। इस पर्व में जितिया गूंथवाने के साथ मडुआ का आटा, नोनी साग, सतपुतिया, झींगी, कंदा, मकई, खीरा आदि का काफी महत्व होता है। महिलाएं जिउतिया का धागा गूंथवा कर पहनती हैं। आज महिलाओ ने आकर्षक परिधानो में सज संवर कर पूजा अर्चना की।
खाद्यसामग्री का है विशेष महत्व:-
जिउतियाव्रत में नोनी के साग का विशेष महत्व है। नोनी का साग थोड़ी-सी जमीन पर लगा देने से वह बहुत ज्यादा पसर जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तरह से वंश वृद्धि होती है। इस पर्व में ऐसी चीजें खाई जाती हैं, जो ज्यादा फैलने वाली होती हैं। मडुआ का आटा भी सानने के बाद खूब फैलता है। 
क्या कहती हैं महिलाएँ:-

सावित्री देवी कहती हैं कि मेरा पहला जिउतिया है, इसलिए बहुत उत्साहित हूं। मेरी क्यूट-सी पायल की लाइफ खुशियों से भरी रहे और हमलोगों को हमेशा खुश रखे यही भगवान से प्रार्थना करूंगी। मैं ज्यादा भूख बर्दाश्त नहीं कर पाती, लेकिन बेटी के लिए निर्जला व्रत रखूंगी। मंजुलता भारती कहती हैं कि मैं  जिउतिया अपनी प्यारे चार पोते,तीन पुत्र की सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कर रही हूं। पोती नही थी तो एक लड़की को गोद ली वह मेरी इकलौती पोती है और मैं भगवान को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे इतनी प्यारी बिटिया की दादी मां बनने का सौभाग्य दिया। निर्जला रहते हुए शाम में व्रती स्नान के बाद प्रदोष काल में गाय के गोबर से अपना आंगन लीप कर सफाई करती हैं। तालाब के निकट पाकड़ की डाल खड़ी कर जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति मिट्टी के बर्तन में स्थापित कर पीली और लाल रूई से सजाती हैं। धूप, दीप, चावल, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन होता है। मिट्टी और गाय गोबर से चिल्हो-सियारों की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से सुशोभित करती हैं। अपने वंश वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्तों से पूजन करती हैं और कथा सुनती हैं।
गीता कुमारी कहती हैं कि पिछले कई साल से जिउतिया कर रही हूं। मेरी एक बेटी और दो बेटा है।उसके लिए जिउतिया करके बहुत खुश हूं। अपनी संतान के लिए खास पूजा करके आत्मिक संतुष्टि मिलती है। भूख-प्यास नहीं लगती।

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