जमशेदपुर।
जमशेदपुर को मिनी भारत कहा जाता है, जहां हर समाज अपने-अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ त्योहार मनाता है। नवरात्र के दौरान जहां बंगाली समुदाय की ओर से भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, वहीं ओड़िया समाज पूरी विधि-विधान से दुर्गा पूजा का आयोजन करता है। इसी कड़ी में साकची स्थित उत्कल एसोसिएशन की दुर्गा पूजा शहर में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है।
यहां पूजा के लिए पंडित विशेष रूप से ओडिशा के पुरी से बुलाए जाते हैं। महाअष्टमी का दिन इस पूजा का सबसे खास दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन भक्तों को मिलने वाला पारंपरिक प्रसाद — ‘कानीका’ (मीठा चावल पुलाव) — सबसे बड़ा आकर्षण होता है।
आमतौर पर पूजा स्थलों पर खिचड़ी, खीर और सब्जी का प्रसाद दिया जाता है, लेकिन उत्कल एसोसिएशन में प्रसाद में मीठा पुलाव, खीर, साग, सब्जी, मिठाई और ओडिशा की प्रसिद्ध पेठा परोसी जाती है। कहा जाता है कि इतना स्वादिष्ट और पारंपरिक भोग पूरे शहर में कहीं और नहीं मिलता। पहले यहां लगभग 1100 भक्तों के लिए कानीका तैयार किया जाता था, लेकिन इस बार संख्या बढ़ाकर 1500 भक्तों तक कर दी गई है।
उत्कल एसोसिएशन दुर्गा पूजा कमेटी के कार्यकारी सभापति भक्तवत्सल साहू ने बताया कि “हर साल भक्त बड़ी श्रद्धा से यहां मां दुर्गा की आराधना करने आते हैं। महाअष्टमी का कानीका प्रसाद इस पूजा की पहचान बन चुका है।” वहीं महासचिव प्रशांत कुमार महंती ने बताया कि “यह परंपरा वर्ष 1936 से चली आ रही है और ओड़िया समाज इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत मानता है।”
1936 से लगातार आयोजित हो रही यह दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक एकता और स्वाद की परंपरा का भी अनोखा संगम बन चुकी है।
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