
चांडिल।
नारायण आईटीआई, लुपुंगडीह चांडिल में सोमवार को महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि श्रद्धा व सम्मान के साथ मनाई गई। इस अवसर पर संस्थान के सभागार में कार्यक्रम आयोजित कर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए गए और उनके संघर्षों को याद किया गया।

संस्थान के संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे ने इस अवसर पर बटुकेश्वर दत्त के जीवन, संघर्ष और भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “बटुकेश्वर दत्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ज्वलंत उदाहरण थे। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ मिलकर दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में दो बम विस्फोट कर अंग्रेजी शासन को खुली चुनौती दी थी। बम विस्फोट का उद्देश्य हिंसा नहीं, बल्कि औपनिवेशिक सरकार को चेतावनी देना था कि भारत अब और दमन सहन नहीं करेगा।”
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डॉ. पांडे ने बताया कि दत्त और भगत सिंह ने गिरफ्तारी के बाद जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार के खिलाफ ऐतिहासिक भूख हड़ताल की, जिससे बाद में कई अधिकारों की स्वीकृति हुई। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के तहत चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर कार्य किया और बम निर्माण की तकनीक भी सीखी।
कार्यक्रम में डॉ. पांडे ने यह भी बताया कि बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को पश्चिम बंगाल के खंडघोष गांव, पूर्व बर्धमान जिले में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गोष्ठ बिहारी दत्त था। उन्होंने अपनी पढ़ाई कानपुर के पं. पृथ्वीनाथ हाई स्कूल से पूरी की और यहीं 1924 में उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह से हुई, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों के उभार को रोकने के लिए भारत रक्षा अधिनियम 1915 लागू किया था, जिससे पुलिस को असीमित अधिकार मिल गए थे। ऐसे समय में बटुकेश्वर दत्त जैसे साहसी युवाओं ने देश की आज़ादी की अलख जगाई।
कार्यक्रम में संस्थान के शिक्षकगण प्रकाश महतो, जयदीप पांडे, शुभम साहू, देवाशीष मंडल, भगत लाल तेली, पवन महतो, अजय मंडल, कृष्णा पद महतो, गौरव महतो, निमाई मंडल, शिशुमती दास सहित अनेक छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे।
सभी ने दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

