जमशेदपुर.
हिन्दी दिवस के अवसर पर तुलसी भवन के चित्रकूट कक्ष में एक भव्य साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें शहर की कई नामचीन साहित्य साधिकाओं और लेखिकाओं ने भाग लिया. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रूप में जिला पार्षद डॉ. कविता परमार उपस्थित रहीं, जबकि अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. रागिनी भूषण ने की. कार्यक्रम का कुशल संचालन लक्ष्मी ने किया और संयोजन की जिम्मेदारी पुष्पा ने निभाई.
इस आयोजन में हिन्दी भाषा की महत्ता को रेखांकित करते हुए विभिन्न प्रतिभागियों ने कविताओं, कहानियों और गीतों के माध्यम से अपनी बात रखी.
प्रस्तुतियाँ:
रीना सिन्हा ने “मां ने पुचकारा” गीत और यार-दोस्तों की गप्पेबाज़ी पर आधारित प्रस्तुति से माहौल में भावनात्मक मिठास घोली.
ज्योत्सना अस्थाना ने अपनी कविता “हिन्दी प्यारी भारत की है शान” के माध्यम से हिन्दी को जन-जन को जोड़ने वाली भाषा बताया.
अन्नी अमृता ने अपनी पुस्तक ‘ये क्या है’ से एक शॉर्ट स्टोरी ‘एक्सक्लूसिव’ का पाठ किया, जो सुनने वालों को सोचने पर मजबूर कर गया.
अरुणा झा और सरिता सिंह ने लघु कथाओं के माध्यम से सामाजिक भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया.
सुष्मिता मिश्रा ने कविता “हिन्दी—एक दिन नहीं, हर दिन की शान है” सुनाकर श्रोताओं में भाषा गौरव की भावना जगाई.
सुदीप्ता जठीराव ने गीत के माध्यम से हिन्दी को “सबसे प्यारी और मधुर भाषा” बताया.
माधुरी मिश्रा ने “फिर क्यों भूल गए हिन्दी” जैसी पंक्तियों से आत्ममंथन की ओर प्रेरित किया.
मंजू कुमारी की कविता “जिसकी कोई सीमा नहीं, वह हिन्दी की रचना है” ने खूब सराहना बटोरी.
ममता कर्ण की कविता “हिन्दी बिलख रही है अपने हिंदुस्तान में” ने व्यंग्यात्मक शैली में सशक्त सन्देश दिया.
डाॅ. शीला कुमारी ने “हम उस देश के वासी हैं, जिस देश की आत्मा हिन्दी है” जैसी भावपूर्ण रचना के ज़रिए हिन्दी को राष्ट्र की आत्मा बताया.
सोनी सुगंधा ने देशप्रेम से ओतप्रोत गीत “सबके अंतस में बसे निज राष्ट्र गौर वंदना” से सभा को भावविभोर किया.
पूनम सिंह,डाॅ मनीला कुमारी और आलोक मंजरी ने भी भावपूर्ण प्रस्तुति दी.
कार्यक्रम की सफलता में इनका रहा योगदान:
———–कार्यक्रम के सफल आयोजन में डॉ. मुदिता चतुर्वेदी, विद्या तिवारी, डॉ. जूही समर्पिता सहित सहयोग के प्रतिनिधियों और कई अन्य साहित्यप्रेमियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने कहा कि हिन्दी दिवस का यह आयोजन न केवल भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक बना, बल्कि यह भी साबित किया कि हिन्दी सिर्फ संवाद की भाषा नहीं, बल्कि भावनाओं, संस्कृति और पहचान की भाषा है.


