जमशेदपुर।
झारखंड की औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर, जिसे अक्सर “मिनी इंडिया” कहा जाता है, अपने सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां अनेक धर्मों और समुदायों के लोग मिल‑जुल कर रहते हैं, और अपनी मूल संस्कृतियों को संजोने की कोशिश करते हैं। इसी मेहनत की मिसाल है गुजराती सनातन समाज, जो जमशेदपुर में रहने वाले गुजराती समुदाय द्वारा संचालित है। जब तक नवरात्र जैसा पावन अवसर रहता है, तब तक गरबा‑डांडिया की तैयारियों की गहमागहमी इस समाज में कुछ अलग ही जोश भर देती है। यह रिपोर्ट है, उन्हीं तैयारियों की।गुजराती सनातन समाज लगभग 98 वर्ष पुरानी संस्था है, जो गुजराती समुदाय के लोगों में अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूती से बनाए हुए है। बीतते समय के साथ यह संस्था अनेक स्थानों से होते हुए आज करीब पचपन वर्षों से बिष्टुपुर के आउटर सर्कुलर रोड स्थित अपने भवन से काम कर रही है।
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नवरात्र के मौसम ने समाज के सदस्यों में जोश और उत्साह भर दिया है। महिलाएँ और युवा‑युवतियाँ ग्रुप बनाकर हर शाम गरबा‑प्रेक्टिस कर रही हैं। रंग‑बिरंगे पारंपरिक परिधान, हाथों में डांडिया, थिरकती काइयाँ — पूरा माहौल नवरात्र में डूब चुका है।
बच्चे भी पीछे नहीं हैं। वे रोज़ अभ्यास करते हैं ताकि मंच पर उनका प्रदर्शन आकर्षक हो — कभी कदमों की ताल में, कभी संगीत की धुनों में। कईयों ने विशेष क्लासेज़ लेना शुरू कर दिया है, जहाँ गरबा‑डांडिया की तकनीक और ताल‑मेल की ट्रेनिंग दी जा रही है।
वरिष्ठ सदस्यों का मानना है कि नवरात्र केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि “शक्ति की उपासना” का पर्व है, जो सकारात्मक ऊर्जा भरता है। वे चाहते हैं कि युवा पीढ़ी भी अपनी परंपराओं से जुड़े रहें, संस्कृति की नज़र और चेतना बनी रहे। गरबा सीखने का यह प्रयास सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि पहचान और आत्म‑सम्मान से भी जुड़ा है
